मुझे याद है बचपन के वो दिन , जब शाम को स्कूल से घर लौटते थे बड़ी भूख लगी होती थी। चार बजे छपरे में एक दो बासी रोटी होती थी और सब्जी होती नहीं थी , मगर एक कांच के जार में सिलबटे पिसा हुआ नूण हुआ करता था जिसमे हरी मिर्च और लहसुन भी पिसा हुआ होता था। क्या स्वाद था उस नूण का। पहले हल्का नमक का स्वाद आता था , फिर लहसुन का स्वाद जीभ से टकराता था और अंत में , हरी मिर्च अपना असर दिखाती थी। वह नूण हमारे लिए वक्त - बेवक्त सब्जी का काम करता था।
नमक को नूण में बदलना आसान था। नमक सिलबट्टे में रखो , दो चार हरी मिर्च और लाल मिर्च डालो , दो चार लहसुन की फांके दाल दो और फिर बट्टे से उसे महीन पीस लो। पहाड़ी नूण तैयार। फिर चाहे ककड़ी के साथ खाओ या दही में मिलाकर या छाछ में डाल लो। अलग ही स्वाद आता था।
बाद में भांग के बीज डला नूण भी खाया , वह भी गजब था। आजकल सुना है इस नूण की लोकप्रियता में इजाफा हो रहा है और दुनिया जहाँ के लोग इस नूण में रूचि दिखा रहे है और कहा जा रहा है की यह नमक स्वास्थ्यवर्धक है। चलो , बढ़िया है। शायद पहाड़ी लोगो के स्वस्थ रहने के हुनर को दुनिया भी पहचान रही है।
mujhe bhi apki baton se we din yad a gaye jab school se ane ke bad badi bhukh lagi rahti thi to ghar mai silbatte ke loon ke sath gehoon aur maduwe ke mix atte jise rou roti kahte hain ka swad hi alag tha. KOYI LOTA DE MERE BITE HUYE DIN.
ReplyDeleteआहा आहा क्या बात हे मेरा पहाड़ा 👏👏
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