कल एक ने पूछा ," आप पहाड़ी हो ?" , मैंने तुरंत उत्तर दिया ," हाँ जी। बिलकुल पहाड़ी हूँ। "
मैंने उससे पूछा ," आपको कैसे लगा ?" तो उसने उतर दिया ," आपके बोलने में पहाड़ी लहजा है। " तो मैं बोला ," फिर तो यही लहजा मेरी पहचान है। "
लेकिन मैंने बहुत से पहाड़ियों को अपने को पहाड़ी कहने में शर्म या संकोच करते देखा है। शायद उन्हें लगता है अगर हम अपने को पहाड़ी बता देंगे तो अगला हमें हीन या छोटा समझेगा। गलत है , बिलकुल गलत। पहाड़ी होना अपने आप में गर्व है। हाँ , हम पहाड़ी थोड़ा अलग होते है क्यूंकि हम में पहाड़ी संस्कृति और पहाड़ो का प्रभाव है। भौगोलिक परिस्थितियों का वहां पर रहने वाले लोगो पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है और यह कुदरती है।
हाँ , हम पहाड़ी थोड़ा अलग होते है। हमारा आचार - व्यवहार थोड़ा अलग होता है। हम पहाड़ी मेहनती , निडर और साहसी होते है मगर यकीनन थोड़ा संकोची होते है। ये हमारे संस्कार है। हम फिजूल का दम्भ नहीं भरते।
हमारा खाना पीना थोड़ा सा अलग होता है। हम प्रकृति के बहुत करीब रहकर पले बढे होते है। हमने विकट परिस्थितियों का मुकाबला बचपन से ही किया होता है इसलिए जल्दी घबराते नहीं है।
कुदरत ने हम पहाड़ियों को एक विशेष गुण से नवाजा है - वह है किसी भी परिस्थिती में अपने आप को ढालना। ये वो विशेष गुण है जो पहाड़ियों को दुसरो से अलग करता है। बेशक , हमारी अंग्रेजी अच्छी न हो , हमारी ऊँचाई जरा कम हो , हमारी नाक जरा चपटी हो या फिर हम अपने बोलने में "ठहरा " या " बल " लगाते हो , मगर हमारी ज़िन्दगी जीने की जीजिविषा और संघर्ष करने की ताकत हमें औरो के मुकाबले बहुत ऊंचा खड़ा करती है। जरुरत सिर्फ इस बात की होती है - हम अपने उद्देश्य के लिए स्पष्ट हो और जो पहाड़ी अपने उद्देश्य के लिए स्पष्ट रहा है उसको आज दुनिया झुक कर सलाम करती है। गर्व कीजिये की - हम पहाड़ी है और औरो से थोड़ा अलग है।
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