Sunday, 14 October 2018

सिसूण या कंडाली या बिच्छू घास याद है आपको ?



अगर आप पहाड़ी है तो एक घास से आपका जरूर कभी न कभी पाला पड़ा होगा और उसकी चुभन ने आपके आँसू जरूर निकाले होंगे।  कभी सजा के तौर पर या कभी अनजाने में इस घास से आपका सामना जरूर हुआ होगा।  

सिसूण या कंडाली या बिच्छू घास अंग्रेजी में नेटल (Nettle ) कहा जाता है. इसका वानस्पतिक नाम अर्टिका पर्वीफ्लोरा  है।  कुमाऊंनी में इसे सिसूण कहते हैं और गढ़वाल में यह कंडाली के नाम से जाना जाता है।  बिच्छू घास उत्तराखंड और मध्य हिमालय क्षेत्र में होती है. यह घास मैदानी इलाकों में नहीं होती। बिच्छू घास में पतले कांटे होते हैं और चौड़े पत्ते होते है और  यदि किसी को छू जाये तो इसमें बिच्छू के काटने जैसी पीड़ा होती है और बहुत लगने से सूजन या फफोले हो जाते है।  बचपन में सजा के तौर पर स्कूल में मास्साब और ईजा ने सजा देने के लिए इसका खूब इस्तेमाल किया है।  

यह सिसूण या कंडाली बहुत उपयोगी है और आयुर्वेद में इसका खासा महत्व है।  आमतौर पर बुखार आने, शरीर में कमजोरी होने, तंत्र-मंत्र से बीमारी भगाने, पित्त दोष, गठिया, शरीर के किसी हिस्से में मोच, जकड़न और मलेरिया जैसे बीमारी को दूर भागने में उपयोग करते हैं।  बिच्छू घास की पत्तियों पर छोटे-छोटे बालों जैसे तीखे और सुई नुमा कांटे होते हैं।   पत्तियों के हाथ या शरीर के किसी अन्य अंग में लगते ही ये कांटे शरीर में धस जाते हेयर और शरीर में  झनझनाहट शुरू हो जाती है, जो कंबल से रगड़ने या तेल मालिश से ही जाती है. अगर उस हिस्से में पानी लग गया तो जलन और बढ़ जाती है.

पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी साग खाया जाता  हैक्यूंकि  इसकी तासीर गर्म होती है और यदि हम स्वाद की बात करे तो पालक के साग की तरह ही स्वादिष्ट भी होती है  इसमें Vitamin A,B,D , आइरन (Iron ) , कैल्सियम और मैगनीज़ प्रचुर मात्रा में होता है.  माना जाता है कि बिच्छू घास में काफी आयरन होता है। 

वैज्ञानिक इससे बुखार भगाने की दवा तैयार करने में जुटे हैं. प्राथमिक प्रयोगों ने बिच्छू घास के बुखार भगाने के गुण की वैज्ञानिक पुष्टि कर दी है। 

अब याद आया आपको सिसूण या कंडाली या बिच्छू घास ?  पहाड़ी लोग ऐसे ही स्वस्थ नहीं होते , कभी न कभी सिसूण का डंक उन्हें तमाम बीमारियों से बचा कर रखता है। 


जय देवभूमि , जय उत्तराखंड।   

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