Saturday 31 March 2018

पहाड़ो की चीख पुकार



सोचो जरा ,
कितनी मेहनत से हमारे पुरखो ने , 
इन पर्वतो को काटकर घर बनाये होंगे , 
किन भीषण परिस्थितयो में , 
ये खेत सीढ़ीनुमा बनाये होंगे।  

घने जंगलो के बीच , 
अपना एक गाँव बसाया था , 
बच्चो के सुनहरे भविष्य के लिए , 
न जाने सालो तक पसीना बहाया था।  

ये पहाड़ यूँ ही आबाद नहीं हुए थे , 
हमारे पूर्वजो ने अपना लहू बहाया था , 
बच्चो को मिले एक ताज़ी आबो हवा , 
बस उनकी यही मंशा थी।  

कालांतर में ये सपना चकनाचूर हुआ , 
गांव छोड़कर शहरो की तरफ उनके नौनिहालों का कूच हुआ , 
बंजर हुए गाँव , बेजार खेत खलिहान हुआ ,
शहरो की चकाचौध ने मेरा गाँव मुझसे छीन लिया।  

" स्वर्ग " सी धरती , " देवताओ " के घर पर , 
न जाने ये कैसा कुटिल घात हुआ , 
लटक गए ताले घरो में , 
मेरा स्वर्ग " सरकारों "  के निक्कमेपन का शिकार हुआ।  

पूछ रही है आज चीख चीख कर ये देवभूमि , 
क्यों मेरे अपने ने मुझसे मुँह मोड़ लिया , 
बंजर करके मुझे , 
तुमने कौन सा " कुबेर " का खजाना जोड़ लिया।  

Sunday 25 March 2018

नथ : पहाड़ी महिला की आन , बान और शान



किसी एक भौगोलिक क्षेत्र में रहने वालो की अपनी कुछ खास पहचान होती है जो उनके खान पान से लेकर उनकी वेशभूषा में भी छलकती है।   उत्तराखंड में भी कुछ आभूषण है जो पहाड़ी महिलाओ को एक अलग पहचान देती है जैसे गलोबन्द और नथ या नथुली।   गलोबन्द अब धीरे धीरे प्रचलन से बाहर होता जा रहा है , मगर नथ अब भी परिवर्तित रूप में हमारी उत्तराखंडी महिलाओ की शान रहा है। 

नथ या नथुली , नाक में पहने जाने वाला वो आभूषण है जो प्रत्येक पहाड़ी महिला के सौंदर्य में चार चाँद लगा देता है।   हर शुभ मुहूर्त में पहने जाने वाला यह आभूषण उत्तराखण्डी महिला का सौभाग्य का प्रतीक भी है जो पुरातन काल से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होता रहा है।  शादी शुदा महिला के लिए नथ उसकी आन , बान और शान है। 
राजा - रजवाड़ो के समय में महल से निकल कर यह आभूषण कब आम लोगो तक भी पहुँच गया , इस पर इतिहासकार का कोई मत नहीं है।   मगर धीरे धीरे यह सब शादी शुदा महिलाओ के लिए एक अनिवार्य आभूषण बन गया।   आज भी जब कोई पुत्री , बहु बनने के लिए तैयार होती है तो सबसे पहले नथ बनाने की तैयारी की जाती है। 


नथुली का डिज़ाइन समय के हिसाब से बदलता रहा है।   जहाँ पहले यह बड़ी हुई करती थी , अब धीरे धीरे छोटी होनी शुरू हो गयी है ताकि आराम से पहनी जा सके।   टिहरी के नथ दुनियाभर में मशहूर है।   कुमाउनी नथो में कारीगरी ज्यादा नहीं होती , मगर गढ़वाली नथो में नक्काशी भी होती है।    बदलते परिवेश में आज भी " नथ " या " नथुली " अपनी जगह को बरक़रार रखने में कायम है और हमारी पहाड़ी महिलाओ के सौंदर्य को बढ़ाने के साथ हमारी परम्पराओ और  वेशभूषा को ज़िंदा रखे है।  यह हर विवाहित स्त्री की धरोहर है जिस पर उसे गर्व होता है। 


साभार - फोटो प्रतीकात्मक तौर पर गूगल से ली गयी है और इसका अधिकार जिसके पास है , उसी के पास है।  

Thursday 22 March 2018

उत्तराखंड के विकास का सूत्र नाम में ही छिपा है


उत्तराखंड ( Uttrakhand ) के नाम में ही उसका विकास का सूत्र भी छिपा है।   अगर कोई समझने को तैयार हो तो उत्तराखंड का विकास इन पैमानो पर किया जा सकता है। 
U – Unemployment  (बेरोजगारी)
T – Tourism (पर्यटन)
T- Tracking (ट्रेकिंग)
R- Religion (धर्म)
A-Ayurved (आयुर्वेद)
K – Knowledge (ज्ञान और संस्कृति)
H- Habitat  (अनुकूल वातावरण)
A-And  (और)
N-  Natural Resources (प्राकृतिक संसाधन)
D-  Development  (विकास)

बेरोजगारी मुख्यतः उत्तराखंड की मूल समस्या है और पलायन का एक बहुत बड़ा कारण भी है।   उत्तराखंड के पास बेरोजगारी दूर करने के लिए पर्यटन , ट्रेकिंग , धार्मिक स्थानों की बहुतायत , आयुर्वेद के लिए जड़ी बूटियाँ , ज्ञान और साफ़ स्वच्छ वातावरण - ऐसे कुदरती वरदान है जिनपर अगर सरकार ध्यान दे तो बहुत हद तक बेरोजगारी को कम किया जा सकता है। 

जरुरत सिर्फ इस बात की है की प्रकृति द्वारे नवाजे गए इन प्राकृतिक संसाधनों का विकास हो।  सरकार और लोग यदि एकजुट हो जाये तो उत्तराखंड के विकास को कोई नहीं रोक सकता।  सरकार को प्रदेश के प्रति अपने दायित्व को समझना चाहिए और लोगो को भी अपने अपने स्तर पर सरकार का साथ देकर हाथ बँटाना चाहिए।  विकास के लिए अलग से कोई सूत्र खोजने की जरुरत नहीं है अगर आप उत्तराखंड को ही समझ ले तो समाधान  नाम में निहित है। 

Saturday 17 March 2018

उत्तराखंड - कुछ रोचक तथ्य

-स्कन्द पुराण में हिमालय को पाँच भौगोलिक क्षेत्रों में विभक्त किया गया है:-अर्थात् हिमालय क्षेत्र में नेपाल, कुर्मांचल (कुमाऊँ), केदारखण्ड (गढ़वाल), जालन्धर (हिमाचल प्रदेश) और सुरम्य कश्मीर पाँच खण्ड है।
-कुर्मांचल (कुमाऊँ) को पौराणिक सन्दर्भ में मानस खंड भी कहा गया है।  ऋषियों , साधुओ की भूमि होने के कारण इस भूभाग को कालांतर से देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। 
- कुमाऊँ और गढ़वाल का अपना इतिहास , अंग्रेजो के अधिकार से पहले अलग अलग रहा है। 
- कुमाऊं क्षेत्र में अधिकतर चंद वंश और कत्यूरी वंश का राज रहा। चंद वंशियो ने अपनी राजधानी अल्मोड़ा बनायीं और कत्यूरियों ने कार्तिकेयपुर ( वर्तमान बैजनाथ ) को राजधानी बनाया था। 
- गढ़वाल - अलग अलग गढ़ो में विभाजित था, जिन्हे पंवार वंश ने एक किया और श्रीनगर को राजधानी बनाया। 
- 1790 से लेकर 1815 तक कुमाऊँ में गोरखा राज्य चला।  लेकिन 1815 में अंग्रेजो ने गोरखाओ को हरा दिया। 
- कुमाऊं पर  अंग्रेजो का अधिकार 1815 से शुरू हुआ। 
- गढ़वाल मंडल को भी अंग्रेजो ने 1815 में गोरखाओ से मुक्त कराया।   टिहरी को छोड़कर सारा गढ़वाल अंग्रेजो के अधीन हो गया। 
- टिहरी राज्य का भारत में विलय 1949 में हुआ। 
- देश की दो प्रमुख हिमालयी नदियों - गंगा और यमुना का उद्गम स्थल उत्तराखंड में ही है। 
- गंगोत्री , यमुनोत्री , केदारनाथ और बद्रीनाथ को छोटे  चार धाम माना गया है। 
-हरिद्वार में प्रति बारह वर्षों में कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें देश-विदेश से आए करोड़ो श्रद्धालू भाग लेते हैं।
- हिमालय की गोद में स्थित हेमकुण्ड साहिब, सिखों का तीर्थ स्थल है।
- जागेश्वर में स्थित प्राचीन मन्दिर देवदार वृक्षों से घिरा हुआ १२४ मन्दिरों का प्रांगण है। 
-उत्तराखण्ड में चूना पत्थर, राक फास्फेट, डोलोमाइट, मैग्नेसाइट, तांबा, ग्रेफाइट, जिप्सम आदि के भण्डार हैं।
- सम्पूर्ण उत्तराखंड दो मंडलो ( गढ़वाल और कुमाऊँ ) , तेरह जिलों ( छः जिले गढ़वाल मंडल और सात जिले कुमाऊं मंडल ) में बंटा है। 
- नौ नवम्बर , २००० को उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड देश का सत्ताईसवाँ राज्य बना। 
-  जिम कॉर्बेट पार्क 1936 में स्थापित हुआ था।
- उत्तराखंड विधानसभा में सत्तर सीटें और लोकसभा के लिए पांच सीटें है। 
- उत्तराखंड का प्रतीक चिन्ह : राज्य पुष्प - ब्रह्म कमल , राज्य पक्षी - मोनाल , राज्य वृक्ष - बुरांश  और राज्य पशु - कस्तूरी मृग है। 
-हिन्दी एवं संस्कृत उत्तराखंड की राजभाषाऐं हैं। इसके अतिरिक्त उत्तराखंड में बोलचाल की प्रमुख भाषाऐं ब्रजभाषा, गढ़वाली, कुमाँऊनी हैं। 
- उत्तराखंड देश का इकलौता राज्य है जहाँ की राजभाषा संस्कृत है। 

Tuesday 13 March 2018

फूलदेई - अदभुत , अनोखा और अद्वितीय त्यौहार



उत्तराखंड की संस्कृति और परम्पराओ को समझना है तो फूलदेई के त्यौहार को समझना आवश्यक है।  यह एक ऐसा त्यौहार है जिसमे आप अपने लिए नहीं , दुसरो की मंगल कामना की दुआ करते हो।  चैत्र मास के पहले पैट को मनाया जाना वाला यह त्यौहार वाकई अद्भुत और अनोखा है।  बच्चे एक दिन पहले तमाम तरह के बासंती फूल तोड़कर इकठ्ठा करते है और फिर इस दिन सुबह नहा धोकर इन फूलो को अपनी अपनी कंडियो में सजाकर चल पड़ते है - गाँव की हर दहलीज पर और इन फूलो से सब घरो की दहलीज पर चढ़ाकर उस घर की मंगल कामना करते है और गाते है 

फूलदेई , छम्मा देइ 
देणी द्वार , भर भकार 
यौ देई  बारम्बार नमस्कार।  
  

और घर का बुजुर्ग भी उन बच्चो के रूप में आये भगवान् को दक्षिणा स्वरूप कुछ  चावल और पैसे देकर विदा करता है।  इन्ही चावलों से फिर 'साई' नाम का प्रसाद बनता है और सबमे बांटा जाता है।  

यह है पहाड़ो में नए वर्ष के स्वागत की परम्परा जो अपने आप में अदभुत और अद्वितीय है।  

हैं न अद्भुत त्यौहार ! नव वर्ष की इससे ज्यादा मंगल शुरुवात और क्या होगी ! आप अंग्रेजी नव वर्ष के आगमन और हिन्दू नव वर्ष के आगमन के हर्षोउल्लास में अंतर समझ सकते है।  

दहलीज पर पड़े तमाम तरह के फूल जैसे आमंत्रण दे रहे हो नए वर्ष को और स्वागत कर रहे हो एक नए वर्ष की।  

चारो और खिले हुए फूल और उनकी खुसबू जब हवा में घुलती है तो एक मदमस्त बयार पूरी फिजाओ को चंचल और मदमस्त बना देती है और फिर गूंजने लगते है पहाड़ो में झोड़े और चांचरी के बोल - जो पूरे वातावरण को गुंजायमान और शोभित कर देते है।  पहाड़ो में मनाया जाने वाला ये त्यौहार बहुत सुन्दर सन्देश देता है।  प्रकृति प्रेम और दुसरो की  मंगल कामना निहित इस त्यौहार की आज की दुनिया में नितांत आवश्यकता है।  

सबको फूलदेई और नए वर्ष की असीम शुभकामनाये।   ईश्वर आपके भकार अन्न और धन से भरे रखे।   आप और आपका परिवार स्वस्थ और सुखी रहे।  
गर्व कीजिये की हम पहाड़ी है और हमें पहाड़ी परम्पराओ पर गर्व है।  

जय देव भूमि , जय उत्तराखंड।  

Monday 12 March 2018

झोड़ा



माठु-माठ उठा हो दीदी , 
अापुण खुटो कू आज , 
त्यार पायल आवाज करि , 
छम छम्म बाजनी आज।  

हुड़का बजाओ दाज्यू , 
यस गाड़ो आज ताल , 
चैतेक य मेहँ एगो , 
पूज ज्यो स्वामी पास आवाज।  

माठु-माठ उठा हो दीदी , 
अापुण खुटो कू आज , 
त्यार पायल आवाज करि , 
छम छम्म बाजनी आज।  

फूल अब फ़ूलनि फेगी , 
कोयल कूकण फेगे , 
स्वामी म्यर परदेसा , 
मीक्यू लागू निशास।  

माठु-माठ उठा हो दीदी , 
अापुण खुटो कू आज , 
त्यार पायल आवाज करि , 
छम छम्म बाजनी आज।  



फोटो साभार - गूगल 
  

Wednesday 7 March 2018

" पहाड़ी शेणियों " कू सलाम



तेरी खूटी , म्यर सलाम 
सब पहाड़ी शेणियो कू प्रणाम , 
आसान नेह  पहाड़ो जीवन , 
त्येर मेहनत बडू ऊके आसान।  

पहाड़ जस जीवन , 
फिर ले बड़ी रू त्यर मुस्कान , 
राति बट्टी ब्याव तक बस कामे काम , 
हे ! पहाड़ी शेणी - तू छे महान।  

गोठ बट्टी भतेर तक , 
घर बट्टी बण तक , 
कसी संभाल दी छे , 
नू हूनि तुकु थकान।  

म्यर पहाड़ो  शेणी ,
निडर, मेहनती और बलवान , 
करनू तुके आज प्रणाम ,
त्यर खूटि , म्यर सलाम।   

फोटो साभार - गूगल  

Monday 5 March 2018

फूलदेई




लहगो रंगील फागुणा , 
होई बग गी गाढ़ा , 
अब एगो बसंत देखो , 
एगो चैतेक  म्हणा।  

मुरुली बाजी ऊँचा डाना ,
हिया लागो उदासा  , 
घुघति अब घुराण फेगे , 
कब आला म्यार सुआ तुम पहाड़ा ।  

बुरुशी अब खिलड़ फेगे , 
कब आलो  फूलदेई त्यारा  ,
घर घर जुना सब , 
माँगन सबु कुसाबाता।

चुन चुन बेर फूल ल्यूना ,
सबु देई चढूना ,
आशीष दिया हो द्याप्तो ,
म्यार गौव - गाड़ हरी भरी धरिया। 

भिटोली आली अब मैत बट्टी , 
आल भे बेण म्यार मुख धी , 
सबकु भौल धरिया हो गोल्ज्यू , 
अर्ज़ छू म्यर तुम्हो धी।  

जोशीमठ

  दरारें , गवाह है , हमारे लालच की , दरारें , सबूत है , हमारे कर्मों की , दरारें , प्रतीक है , हमारे स्वार्थ की , दरारें ...