Sunday 6 September 2020

लोहार और आफर


 जब चीड़ के बगेटो से ,

आग निकलती थी ,

वो हाथ से पहिया घूमता था ,

जो हवा देता था बगेटो  को ,

बगेटो की वो आग ,

लोहे को "अद्भुत लाली " देती थी ,

और आफर फिर लोहा भी नरम कर देता था ,

फिर बनाता था वो दराती , हल के फाल

और धार देता था कुल्हाड़ी और बढियाट में ,

पता था उसको किसमे कितनी धार देनी है ,

और किस में कितना बड़ा -छोटा , मोटा -पतला बीन देना है ,

किसके घर के बैलो में कितनी ताकत है,

उसी हिसाब से ढालता था हल की फाल । 

 

कहते है अनपढ़ था वो ,

दुनियादारी से अनजान ,

उसने सीखा था अपने पुरखो से ये  हुनर ,

लोहा मुड़ता था उसके इशारो पर ,

गर्म लोहे को पीटकर ,

जब वो पानी में भिगोता था ,

" छै" की आवाज से लोहा भी ,

उसके हुनर के गुण गाता था। 

 

मगर अब न आफर है , न लोहार

सब मशीनों से बनने लगे है ,

दराती  , बढियाट्ट , और हल के फाल ,

सब एक जैसे , एक जैसी धार ,

एक जैसे बीन - बिना ख्याल किये ,

किसका हाथ छोटा , किसका हाथ बड़ा ,

किसके घर के बैल ताकतवर  ,

और किसके कमजोर ,

क्यूंकि मशीन नहीं समझती भावनाओ को ,

उसके लिए सब बराबर ,

लोहार समझता था मगर ,

इस दौर में अब किसको है उसकी कदर।  

Monday 20 July 2020

पहाड़ो में सावन


सावन में जब आकाश से , 
मेघो की फुहार बन बूँदे गिरती है , 
रिमझिम जब ये कई दिनों तक , 
बरसती रहती है , 
होना तो रूमानी चाहिए इस मौसम में , 
मगर पहाड़ में  चिंता लगी रहती है , 
न जाने कहाँ अब बादल फट जाए , 
न जाने कहाँ से छत चूँ जाये , 
न जाने कौन सा गधेरा उफान मारे , 
न जाने नदी इस बार कौन सा खेत बहा ले जाये , 
न जाने अब जंगल से चारा कैसे लाया जाये , 
न जाने कैसे गीली लकड़ियों से आग जलाई जाये ,
न जाने कहाँ से पहाड़ खिसक आये ,
न जाने कौन सा जानवर फिसलते रास्तो में घुरी जाये , 
न जाने कौन सा रास्ता इस बार बह जाये।  

पहाड़ो का सावन हरियाली तो लाता है , 
मगर ब्याज में बहुत कुछ छोड़ जाता है , 
गिरे  पहाड़ , 
टूटी सड़के , 
आधे खेत , 
टपकती छत , 
और सावन की बीतने की कामना करते , 
तमाम पहाड़ी लोग, 
पहाड़ो में सावन , 
रूमानी कम , डरावना ज्यादा होता है।  

Wednesday 20 May 2020

सुमित्रानंदन पंत जी का जन्मदिन



कवि जगत के अपने पुरोधा को , 
आज सदर नमन और अभिनन्दन , 
रचा बसा था जिनके अंदर पहाड़ , 
कलम से निकली थी अटूट धार , 
वो " पंत " थे कौसानी से , 
धन्य किया जिन्होंने काव्य संसार।  

हे ! पूर्वज मेरे - कलम मैंने भी थामी है , 
पदचिन्हो पर आपके , 
कुछ दूर तक चलने की ठानी है , 
तुम बरगद से खड़े सामने , 
मैं अभी उगता झाड़।  

छायावाद के प्रमुख स्तंभ , 
युग पथ, सत्यकाम, शिल्पी, सौवर्ण, चिदम्बरा, पतझड़, रजतशिखर, तारापथ के रचनाकार , 
धन्य हुई वो भूमि , 
जहाँ जन्मे शब्दों के आप शिल्पकार।  



Wednesday 18 March 2020

पत्थर फूल




पहाड़ो में चीड़ के पेड़ो पर या बड़े से पत्थरो में पत्थर फूल खिला या चिपका हुआ देखा होगा।   बड़े काम की चीज है ये पत्थर फूल।   मुझे याद है बचपन में हम इसको इकट्ठा करके पत्थर में पानी के साथ पीसकर हाथो में लगाते थे , और सूखने के बाद ये मेहँदी जैसा लाल रंग देता था हाथ पर। 

लेकिन ये पत्थर फूल मसालो के परिवार का हिस्सा है और मसाले के रूप में प्रयोग होता है - खासकर नॉन-वेज बनाने में इसका इस्तेमाल होता है।  बहुत सारे औषिधीय गुण भी शामिल होते है इसमें।   मजेदार बात ये हैं की ये एक फफूँद की तरह है जो पेड़ो और पत्थरो में अपने आप उगता है और प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से अपना भोजन बनाता और पनपता है। 
उसको पेड़ से या पत्थरो से निकालकर सुखाया जाता है और फिर मसाले के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।   यह पेट के विकार दूर करने में बहुत लाभदायक है।  भारत में अलग अलग जगह इसे अलग अलग नामो से जाना जाता है। 

Tuesday 25 February 2020

लूकी गे छौ हमेर सरकार।



लुकी गे छौ सरकार ,
का गैयी हो सरकार ,
ढूँढो ढूँढो हो सौकार ,
लूकी गे छौ हमेर सरकार।

तात तेल खितो कानो मी ,
ठंडो  पाणील  जगाओ ,
जगाओ , जगाओ , जल्दी जगाओ ,
सी गे हमेर सरकार।

दून मी हाथेम हाथ धर ,
खुटम खुट धरी रे ,
जनता पहाड़ो में ,
विकासेक राह ताकी रे।

बजर पाड़ी हलो पहाड़ो कू ,
न छे क्ये रोज़गार ,
सब तलहुँ लेहगी ,
को खोलल अब घरेक द्वार।

समेरा समेर हेरै ,
विधायक ज्यू हूनी मालामाल ,
चार आनेक काम नि हुनोय ,
खर्च देखूनि  हजार।

लुकी गे छौ सरकार ,
का गैयी हो सरकार ,
ढूँढो ढूँढो हो सौकार ,
लूकी गे छौ हमेर सरकार।

जोशीमठ

  दरारें , गवाह है , हमारे लालच की , दरारें , सबूत है , हमारे कर्मों की , दरारें , प्रतीक है , हमारे स्वार्थ की , दरारें ...