Thursday, 18 October 2018

नहीं भूलती वो यादें


नहीं भूलती वो यादें , 
वो पाथरो के घर , 
वो ऊँचे नीचे रास्ते ,  
वो नौले का पानी , 
वो बाँज की बुझाणि , 
वो आमा बुबु के फसक , 
वो भट्ट के डुबुक , 
वो गाँव की बखाई , 
वो झोड़े , चांचरी 
वो जागर की धुन , 
वो "भुला " का अपनापन ,
वो "दाज्यू " का प्यार , 
वो "बेणी " का दुलार , 
वो "बौजी " की झिड़क , 
वो " ईजा " की फिक्र , 
वो गोल्ज्यू का थान , 
वो "शिवालय " की शान , 
वो "बुराँश " के फूल , 
वो "काफल " का स्वाद , 
वो "हिसालू ", "किलमोड़े "
वो " पालक " का साग ,
वो रास्तो पर बेख़ौफ़ धिरकना ,
वो सब "अपने" है का एहसास , 
नहीं भूलती है वो यादें , 
कहीं भी रहे हम , 
पहाड़ों की बहुत आती है याद।  

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