Thursday 5 May 2022

पहाड़ों से मैदान

 

मैं कौतूहलवश उतरा था ,

पहाड़ों से मैदानों में ,

मुझे बहुतों ने बताया था ,

स्वप्न नगरी है वहां ,

वहां हर सपना पूरा होता है ,

ऊंचे -ऊंचे मकान ,

सरपट दौड़ती लम्बी कारें ,

आँखें चौंधियाती रातें ,

मैं थोड़ा उकता सा गया था ,

एक धार से दूसरे धार ताक ,

क्या इतना ही है मेरा आकाश ,

चल दिया इक दिन ,

जो थोड़ा सामान था मेरे पास ,

खो सा गया मैदानों में आकर ,

जीवन बहुत था आसान ,

पल्ले में रुपये - पैसे हो ,

सब सपने यहाँ साकार ,

लगाई जुगत फिर कमाई की ,

मेहनत की अपार ,

दिन देखा , रात देखी ,

सहा जगह - जगह दुत्कार ,

मगर पत्थरों से सिर टकराने की ,

पहाड़ों की आदत बहुत आयी काम ,

भूलने लगा अपने गाड़ - गधेरे ,

लगने लगा अब चढ़ पाउँगा ,

अपने गाँव का धार ,

कुछ मेहनत , कुछ किस्मत ,

कुछ मेरे बुजुर्गों और द्वाप्तो का आशीर्वाद ,

लेने लगे मेरे सपने आकार ,

मगर तब भी सपनों में ,

अक्सर आता रहा 'मेरा पहाड़ ',

भागमभाग तेज हुई ,

कदम मैं भी बढ़ाता गया ,

शहरी दौड़ में जाने मेरा तन ,

कब शरीक हुआ ,

जोड़ -तोड़ कर कुछ हासिल तो किया ,

मगर वो सुकून को मेरा मन तरस गया ,

वो रास्ते टेढ़े -मेढ़े , उबड़ -खाबड़ ,

मेरे गाँव के जो मेरे घर तक जाते थे ,

वो नदी जिसकी कल -कल जगाती थी ,

वो हवा जो साँय - साँय बहती थी ,

वो पानी जो अमृत सा था ,

वो फूल , ताजे फल ,

शहरों में सब मोल था ,

जो मैं छोड़ आया था पीछे ,

अब उसी को खरीदने  ,

पहाड़ छोड़कर शहर गया था।

जोशीमठ

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