Wednesday 2 January 2019

कुमाऊँ का मकर संक्रांति पर्व- घुघतियाँ



मकर संक्रान्ति का त्यौहार इस बार १४ जनवरी को है और यह पूरे देश में अलग अलग नाम से मनाया जाता है।  उत्तराखंड में इस त्यौहार को उत्तरायणी के नाम से भी जाना जाता है।  कहते है इसी दिन से दिन बढे होने शुरू हो जाते है।   बागेश्वर में सरयू किनारे उत्तरायणी का मेला लगता है।   कुमाऊं मंडल में इस त्यौहार को " घुघुतिया " नाम से मनाया जाता है।  "घुघुतियाँ " मनाने के पीछे बहुत सी दन्त कथाएं प्रचलित है जो तार्किक भी लगती है और इसी वजह से यह त्यौहार लोक उत्सव भी बन जाता है।   
इस दिन एक विशेष प्रकार का व्यंजन " घुघुत " बनाये जाते है। 

सबसे पहले पानी गरम करके उसमें गुड़ डालकर चाश्नी बना ली जाती है, फ़िर आटा छानकर इसे आटे में मिलाकर गूँथ लिया जाता है। जब आटा रोटी बनाने की तरह तैयार हो जाता है तो आटे की करीब ६” लम्बी और कनिष्का की मोटाई की बेलनाकार आकृतियों को हिन्दी के ४ की तरह मोड़्कर नीचे से बंद कर दिया जाता है। इन ४ की तरह दिखने वाली आकृतियों को स्थानीय भाषा में घुघुते कहते हैं। घुघुतों के साथ साथ इसी आटे से अन्य तरह की आकृतियाँ भी बनायी जाती हैं, जैसे अनार का फ़ूल, डमरू, सुपारी, टोकरी, तलवार आदि; पर सामुहिक रूप से इनको घुघूत के नाम से ही जाना जाता है।

आटे की आकृतियाँ बन जाने के बाद इनको सुखाने के लिए फ़ैलाकर रख दिया जाता है। रात तक जब घुघुते सूख कर थोड़ा ठोस हो जाते है तो उनको घी या वनस्पति तेल में पूरियों की तरह तला जाता है। फिर बनायीं जाती है मालाएं , जिन्हे बच्चे अगले दिन सुबह सुबह गले में डालकर चिल्लाते है - " काले कौव्वे काले , घुघूती माला खा ले "

सुबह एक कटोरे में कुछ घुघते, बड़े और पूरियाँ डालकर घर की छत या खुले में रख दिए जाते है और फिर "कौव्वे" आकर उन्हें उठा ले जाते है और उनको कही छुपाकर फिर दूसरे घर की तरफ चले जाते है।  साल भर दुत्कार खाने वाला यह पक्षी उस दिन बड़ा सम्मानीय हो जाता है।   

आप अगर १५ जनवरी को कुमाऊं की तरफ जाएँ और सुबह सुबह अगर ये शोर सुनने को मिले तो समझ जाइएगा की " घुघुत " खाने के लिए कौवो को बुलाया जा रहा है। 
बाकि घुघतो को बड़े चाव से खाया जाता है और यह पकवान जल्दी ख़राब भी नहीं होता।   तो तैयार रहिये " घुघतियाँ ' मनाने को और इस बार एक घुघुत विश्व शांति के लिए भी माला में पिरो लीजियेगा और हां , बच्चो की माला में संतरे या और कोई फल भी गूँथ लीजियेगा , घर में बरकत रहेगी। 

जोशीमठ

  दरारें , गवाह है , हमारे लालच की , दरारें , सबूत है , हमारे कर्मों की , दरारें , प्रतीक है , हमारे स्वार्थ की , दरारें ...