Monday 30 April 2018

गर्मी ऐगे दाज्यू , अब तो हिटो पहाड़



गर्मी ऐगे दाज्यू , अब तो हिटो पहाड़ 
देवदार बोठो शौ , बांझक जाडू ठंड पाणी 
प्लुम , खुमानी , काफो - खे जाओ , 
आओ , सब यो गर्मी मी , 
आपुण आपुण द्वार खोल जाओ।  

मैदार ठंड हाव चली रे , 
चाड पिटूंग करनी ची चीटाट,
राति ब्याऊ ठंड छू , 
स्वागत करनी यो पहाड़।  

गर्मी ऐगे दाज्यू , अब तो हिटो पहाड़ 
खोल जाओ अब आपुण आपुन घरेक द्वार 
द्याप्तो पूज कर जाओ , 
धर जाओ कराण , 
रक्षा कराल तुमार कुल द्यापत , 
आपुण बच्चो कू ले दिखाओ आपुण जड़ , 
आओ , ए जाओ यो गर्मी पहाड़।  

Tuesday 17 April 2018

क्यापौक , क्याप हेगो ( कुमाउँनी व्यंग्य कविता )

क्याप , क्याप हेगो , 
सही छू हो महाराज , 
आजेक जमान मी भौल मैस हरेगो।  

संस्कार बदल गी , 
फैशन बदल गो , 
गौ गाड़ केकू भौल नी लागेन , 
सबु घर अब शहर मी हेगो।  

मोबाइल फोन अब सबु हाथ एगो , 
एक घरक भीतर आवाज नि दीन , 
व्हाट्सप्प मि " खाऊ आओ " मैसेज चमक गो।  

आपुण खेती बाँझ पड़ी गे , 
अनाज अब मौल हेगो , 
छा -दूध को पी अब , 
घर घर चाहा और कॉफ़ी सुराट हेगो। 

ठंड हाव , ठंड पाणी अब पुराणी बात हेगे , 
नौव सब सूख गी , बौठ डाऊ सब काटी गी ,
शेणी अब मिजात मी मगन छीन , 
मैस ताश और दारू दिगे मस्त छीन।  

क्याप , क्याप हे गो ,
पैदल को चलु अब , 
गाडियाक भुभाट हेगो,  
पहाड़ अब पैली जस नि रेगो।   

Saturday 14 April 2018

एक पहाड़ी शेणी आपबीती


तुम जाहूं एडवेंचर कूछा , ऊ हम रोज़ करनू 
हम पहाड़ा शेणी , रोज ज्यान हाथ मी धरनू।  

बांज काटहु एक फांग मि चढ़ जानु , 
शौक ने यो हमर , मजबूरी छू , 
दोड़ मी गोर बाछ छीन , 
उनेर पेट लेह भरण छू।  

आसान नेह हो दाज्यू , यो पहाड़ा जीवन 
दिन रात मेहनत करण पडू , 
उकाव , भ्योह सब एक करण पडू ,
दुय रोटा खातिर सब करण पडु।  

हाथ मी दाथुल , कमर मी ज्योड़ 
राति निकल जानु , 
घाम तेज हूण हबे , 
पैली घर घटव पहुँचा दिनु।  

फिर घरेक काम ले भाइय , 
नान्तिना खान पीण , 
कपड़ लेह धौंण भाइय , 
आपुण लीजी रती भर टेम नि रून, 
भौनो बोज्यू दिनभर ताश खेलबेर ,
ब्याहु दारू पी बेर " कै करो त्यूल " कुनो भाइय।  

असोज जस मेरी ज़िन्दगी , 
जेठेक जस घाम हेगे , 
मी पहाड़ शेणी हो दाज्यू , 
जवानी मी बूढ़ी हेगे।  

जोशीमठ

  दरारें , गवाह है , हमारे लालच की , दरारें , सबूत है , हमारे कर्मों की , दरारें , प्रतीक है , हमारे स्वार्थ की , दरारें ...