Saturday 14 December 2019

ताजी बर्फ और गुड़



ये फोटो अनायास ही मुझे मेरे बचपन में ले गया।   मैं मूलतः अल्मोड़ा ज़िले के सोमेश्वर क्षेत्र के एक छोटे से गाँव का निवासी हूँ और अब आजीविका के लिए दिल्ली में रहता हूँ।   कल पहाड़ो में भारी बर्फ़बारी हुई तो किसी ग्रुप में ये फोटो वायरल होकर मुझ तक पहुँची। 

मेरा बचपन भी गाँवों में बीता और जब छोटा था तो हम भी थाली लेकर गिरती ताजी बर्फ इकठ्ठा करते थे और फिर घर के अंदर जाकर गुड़ के साथ खाते थे।  वो शायद हमारे लिए उस समय आइसक्रीम का काम करती थी।   मगर ताज़ी बर्फ का स्वाद , फ्रिज में जमे बर्फ से बहुत अलग होता है।   और जब ये ताज़ी बर्फ की फाँके गुड़ के साथ मुँह में घुलती थी , मजा आ जाता था। 

पहाड़ो में अभी और बर्फ गिरेगी , तो कोशिश करियेगा - ताजी बर्फ और गुड़ की आइस क्रीम।   

Friday 8 November 2019

उत्तराखंड स्थापना दिवस -9 नवम्बर


हमें चाहिए था अपना राज्य , 
ताकि कदमताल कर सके , 
देश के विकास  की गति में , 
हम भी अपना योगदान दे सके।  

उपेक्षा हुई बार बार , 
मैदानों से अलग थे पहाड़ , 
भूगोल ऊँचा नीचा था , 
कुदरत की थी ये मार।  

फिर ठाना जो होगा देखा जायेगा , 
अब किसी का मुँह नहीं ताका जायेगा , 
अपने हिस्से की लड़ाई खुद लड़ेंगे , 
अपना " राज्य " लेकर ही दम लेंगे।  

संघर्ष हुआ अपार ,  
खुद के वजूद के लिए 
हर जन हुआ भागीदार , 
रीत गए कई हजार।  

9 नवम्बर 2000 की बेला आयी , 
पहाड़ो ने ली एक नयी अंगड़ाई , 
अपने राज्य का सपना हुआ साकार , 
सबने मिलकर खुशियाँ मनाई।  

नए सपने , नयी उम्मीदें 
पहाड़ो में जैसे नई जान आयी , 
घिसट , लुढ़क कर धीरे धीरे , 
अब पैरो पर खड़े होने की बारी आयी।  


अब बाल्यावस्था से जवानी की , 
दहलीज पर पहुँचने की सबको बधाई, 
उठो , जागो , स्वार्थ छोडो अब , 
नव उत्तराखंड बनाने की बारी आई।  

Thursday 26 September 2019

उत्तराखंड पंचायत चुनाव


तुतीर बाजी गे , 
जोर शोर हैगो , 
चुनाव ऐगो , 
प्रधान चुनो दाज्यू भुला - भे -बेणियो  
जो गौव ध्यान धरो।  

गौव विकास जरुरी छू , 
प्रधान भौते जरुरी छू , 
जात पात में झन पड़िया , 
जो भौल छू , 
व्यू कू चुनिया, 
सब आपुण वोट दिया।  

गौक विकास हलो , 
सब बढ़िया हौल , 
मिलजुल बेर , 
गौक तरक्की मी सबु हाथ रौल।  

Friday 16 August 2019

दाथुली




दाथुली सब जाणु म्येर मनेक बात , 
मी ले पछाड़ूँ येक क्षणक्ष्णाट, 
म्येर दगड़ू छू यौ , 
येका दिगे हुनि म्यार बात।  

विरहा मन म्यरौ , 
जंगओ जसि बात , 
काट घा जल्दी जल्दी , 
ग्वोर बाछौ टिटाट।  

भौ बौज्यू परदेश भया , 
काकू सुणो आपुण बात , 
दाथुली अब तू मेरी दगड़ी , 
तू हूणी कर ल्यू द्वि चार बात।  

घा काटन काटन त्येर धार ,
ले अब मंद पड़ी गे , 
मी ले बूढ़ी फगियो , 
अघिन जन्मम दाथुल झन बणिये।  

Thursday 8 August 2019

सुषमा स्वराज ने 2002 में कहा था- रानीखेत मेरा मायका है ।



पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जी पंचतत्व में विलीन हो गयी और पीछे अपनी अनगिनत यादें छोड़ गयी।   राजनीतिज्ञ होने के साथ साथ उन्होंने भारतीय महिला का जो रूप प्रस्तुत किया , वो यकीनन अनुकरणीय है।   2002 में चुनाव प्रचारो में वो रानीखेत भी आयी थी और जब रानीखेत में उनका परम्परागत स्वागत किया गया और पिछौड़ा ओढ़ाया गया तो वो सहसा बोल उठी - " रानीखेत तो मेरा मायका हो गया। "  यह फोटो अपने आप में सहस्त्र शब्दों के बराबर है।  

" नश्वर शरीर है , एक दिन सबको जाना है। 
   कितने दिलो में घर कर गए , यही महानता का पैमाना है।।"  

फोटो साभार - गूगल 

Sunday 7 July 2019

हरेला पर्व


हमारा उत्तराखंड अपने लोक पर्वो के लिए विख्यात है।   प्रकृति से जुड़े बहुत से लोक पर्वो में से एक महत्वपूर्ण पर्व है - हरेला।   हरेला यानि हरियाली।   17 जुलाई को पड़ने वाले हरेले पर्व की शुरुवात आज हरेला बोने से हो जाएगी और फिर दसवे दिन इस हरेले को काटने के साथ " हरेला पर्व" संपन्न हो जायेगा।  हरेले से दस दिन पहले " हरेला " बोया जाता है। 
रिंगाल की टोकरी या लकड़ी के पटले को साफ़ किया जाता है।   मिटटी को छान लिया जाता है।  फिर मिटटी , बीज , मिटटी , बीज की प्रक्रिया को छः या सात बार दोहराया जाता है।  सात प्रकार के अनाज - जौ, गेहूं, मक्का, गहत, सरसों, उड़द और भट्ट बोये जाते है और फिर इससे सूर्य की रौशनी से दूर मंदिर या घर के साफ़ कोने में रख दिया जाता है।  रोज़ फिर थोड़ा थोड़ा पानी देकर सिंचित किया जाता है।   तीन - चार दिन बाद ही बीज अंकुरित हो जाते है और फिर धीरे धीरे पीले पौधे पनप जाते है।   पीले पत्तियां और सफ़ेद तनियाँ - हरेले को मोहक बना देती है।   बचपन में हम गाँव में " किसका हरेला " ज्यादा बढ़ गया है , घर घर चक्कर लगाते थे।   दसवे दिन इसी हरेले को पतीसा या काटा जाता है।   आज भी परम्परा है की " हरेला " परिवार में एक ही जगह बोया जाता है , भले ही परिवार के सदस्य अलग अलग स्थानों में ही क्यों न रहते हो। 

लोक पर्वो में " हरेले " का अपना एक उच्च स्थान है।  यह पर्व मंगल कामनाओ का पर्व है , हरियाली का पर्व है और प्रकृति के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करने का पर्व है।  पहाड़ो में सावन  के आगमन का प्रतीक है और बड़े - बुजुर्गो से मिलने वाली आशीष का पर्व है। 

जी रये, जागि रये..धरती जस आगव, आकाश जस चाकव है जये..सूर्ज जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि हो..दूब जस फलिये, सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि झाड़ जाये'

ईश्वर से कामना है - आपका जीवन हरा भरा रहे। 

Wednesday 26 June 2019

चलो , सँवारे अपना उत्तराखंड


अपनी भूमि , अपना प्रदेश
अपना गाँव , अपना घर
मिलजुलकर आओ सब ,
सँवारे अपना उत्तराखंड। 

जन्मे भाग्य से इस भूमि पर  ,
देवलोक सा हमारा उत्तराखंड ,
नदियाँ , झरने, घने जंगल
प्रकृति का वरदान उत्तराखंड। 

भुला दिया है हमने ,
बाकी है हमपर इसका ऋण ,
समय आ गया अब ,
उन्नति की राह चले मेरा उत्तराखंड। 

एक से अनेक बने ,
अनेको से ताकत मिले ,
सर्वत्र विकास के पथ पर ,
अपना उत्तराखंड चले। 

आओ की अब खुद पहल करे , 
प्रकृति के इस उपहार को , 
फिर से देवभूमि बनाये ,
जैसे भी हो , प्रयास करे।  
चलो , सँवारे अपना उत्तराखंड।  

Thursday 30 May 2019

कचकचाट



आम्म बुबु कचकचाट , 
नान्तिनो यौ नि करो , 
ऊ नि करो , 
नि करो ज्यादेक मिजात , 
बचे बेर धरो डबल , 
बाजी बखत आल काम।  

राति जल्दी उठो , 
करो कुछ काम , 
ज़िन्दगी इसकये नि कटन , 
गवुण  पड़नी शरीरक हाड़।  

उदेकु खाओ जदु भूख छू , 
अन्न नि करो बर्बाद , 
टीवी , मोबाइल ज्यादेक नि देखो , 
आँख है जानी खराब।  


( मिजात - फैशन , बाजी बखत - बुरा समय, गवुण - गलाना, उदेकु - उतना ही , जदु - जितना  , डबल - पैसे  ) 

Friday 10 May 2019

कसी भूलू आपुण पहाड़ो कू



कसी भूलू आपुण पहाड़ो कू ,
ऊ ठंड ठंड हाव ,
ऊ नौव पाणी ,
ऊ ताल माल बखाई ,
ऊ गोलज्यू थान ,
ऊ ऊँच नीच बाट ,
ऊ पन दा चाहेक दूकान ,
ऊ काकड़ेक झाल ,
ऊ मड़ुआ रवाट,
ऊ काफ़लेक स्वाद ,
ऊ आम्म बुबु फसक ,
ऊ धार मी घाम ,
ऊ बाँजेक बुझाणि स्योव ,
बता दी भुला ,
कसी भूलू आपुण पहाड़ो कू। 

ऊ दमुआ और निशाण ,
ऊ झोड़ा चाँचरी ,
ऊ छोलिया नृत्य ,
ऊ बीन बाजोक तान ,
ऊ जागर मी हुड़केक थाप ,
ऊ पत्तल मी आलू गोभी साग ,
ऊ एच पेच ,
बता दी भुला ,
कसी भूलू आपुण पहाड़ो कू।

Wednesday 17 April 2019

जे ले हौल , देखिनि रौल।




कै बाते चिंता , कै बातें फिक्र 
जो कर्म आपुण हाथ मी छीन , 
करते जाओ , बाकि 
जे ले हौल , देखिनि रौल।   

मेहनत करण मी नि घबराओ , 
बंजर स्यार मी हौ तो चलाओ , 
दौ पाणी चिंता तुम नि करो , 
जे ले हौल , देखि जाल।  

नान्तिनो कू तुम पढ़ाओ , 
भाल संस्कार उनकू दौ , 
बकाई उनैर किस्मत भई ,
जे ले हौल , देखिनि रौल।   

चिंता फिक्र ज्यादेक नि करो , 
तबियत आपुण नि बिगाड़ो , 
कर्मो फल जरूर मिलाल , 
जे ले हौल , देखिनि रौल।  

समयेक फेर चलते रुनी , 
कभते  घाम , कभते दौ लागि रूनी 
समयक दिगे कदमताल करि जाओ ,
जे ले हौल , देखिनि रौल।  

सुःख दुःख तो उने -जाने रौल , 
ठंड बाद गर्मी उने रौल , 
ज्यादेक चकबकाहट क्ये देखूण हरौ , 
जे ले हौल , देखिनि रौल।  


जे ले हौल , देखिनि रौल - जो होगा , देखा जायेगा 

Friday 5 April 2019

दाज्यू , आपुण पहाड़ देख जाओ।



गर्मी एगे दाज्यू ,
अब ए जाओ पहाड़ ,
ठंडी हवा ,
ठंडो पाणी ,
खोल जाओ ,
आपुण घराक द्वार। 

गौव -गाढ़ भेट जाओ,
दव्याप्त आपुण पूज जाओ ,
काफो - हिसाव खे जाओ ,
नान्तिनुकू पहाड़ दिखे जाओ,
शहरो मी ताती जाला ,
यौ गर्मी पहाड़ काटी जाओ। 

गौव -गौव उजाड़ हेगी ,
ज्यादातर घरकु ताई लटक गी ,
खौव मी दूब जामगो ,
मंदिर मी दीय  जगाई म्हणो हेगो,
कुछ दिन ऐ जाओ ,
दाज्यू , आपुण पहाड़ देख जाओ। 


Tuesday 26 March 2019

सीख



सब पाख में चढ़नी
तो आपुण धूरि मी नि चड़न चेन ,
आपुण चद्दर देख बेर ,
खुट फैलुन चेन। 

जमान बढ़ दिखावटी एगो ,
दुहौर कू देखबेर ,
आपुण रंग ढंग नि ,
बदौव चेन। 

मेस भौते बदल गी अब ,
उनौर बात सुणी बेर ,
आपुण  घरेक सुखचैन ,
नि बिगाड़न चेन।  

आपुण कर्म भौल करो ,
फिर के चिंता नेह ,
फलेक चिंता भगवान करौल ,
बढ़िया नीन उड़ चेन।



पाख - छत , धूरि - छत पर बनी चिमनी , बदौव - बदलना, दुहौर - दूसरे को , फैलुन - फैलाना , मेस - लोग , सुणी - सुनने , बिगाड़न – बिगाड़ना, भौल - अच्छे , करौल- करेगा , नीन - नींद

Thursday 14 March 2019

फूलदेई




घरबार आबाद रौ ,
देई बट्टी सुख और संपत्ति ,
फूल चढूनी आज हम ,
पूर साल तुम्हौर बड़ी रो। 

आशीष हमकू ले दियो ,
दूब जस फैलो ,
आकाश जस विशाल ,
पर्वत जस ऊंच रो। 

तुम्हौर देई कू भेटने रो ,
गौव गाड़ म्योर हरी भरी रो ,
हम नानतिन खेलन रो ,
सबु कुशल मंगल है रो। 

गौव बूढ़ बाड़ी स्वस्थ रो ,
देश परदेश सब कुशल रो ,
हँसने रइया साल भर ,
के कष्ट नि ओ। 

Thursday 7 March 2019

कुमाउँनी होली - फौजियों के नाम



हो , हो , हो , हो !
घर बार छोड़ी , नानतिन पिछाड़ छोड़ी
बॉर्डर मी देशेक रक्षा लीजी राइफल थामी ,
म्यार देशेक फौजियों तुम्हौर गुण गानी। 
हो , हो , हो , हो

धर्म तुम्हौर देशेक रक्षा ,
कर्म तुम्हौर देशक रक्षा ,
दुश्मनो दीबे खार खानी ,
म्यार देशेक फौजियों तुम्हौर गुण गानी।
हो , हो , हो , हो !

ज्यान हथेली मी धरी ,
ह्यून -बरसात - गर्मी ,
सब मौसमो मी ठाड़ रूनी ,
म्यार देशेक फौजियों तुम्हौर गुण गानी।
हो , हो , हो , हो !

तुम्हौर वीरता देख्बैर दुश्मण कामनि ,
तेज देख्बैर सूरज शर्मानी ,
घरवाल तुम्हौर रोज राह देखनी ,
म्यार देशेक फौजियों तुम्हौर गुण गानी।
हो , हो , हो , हो !


फोटो साभार - गूगल 

Monday 25 February 2019

एक जमान छी हो



एक जमान उले हुछि , 
द्वारो मी म्योर गौंव वाल ताई नी लगुछी  , 
गौंव मी एकेक पीड़ , 
सब गौंव वालू पीड़ हुछि।  

मिल जुल बेर सब काम हुछि , 
बूढ़ बाड़िया खूब पूछ हुछि ,
नानतिन सब दगडे खेलछि , 
राती बटे ब्याव गौंव आबाद रुछि।  

नौव पाणी हुछि , 
बांजाक बूझाणि हुछि , 
जंगओ मी काफल और बमौर पाकछि,
पूरा गौंव एक धात मी इकट्ठ हुछि।  

साग -पाताक ऐच पेच हुछि ,
एक घरेक धिनाय सबु चाह रंगुछि,
गौव  स्याणु दीबे सब डरछी ,
पूरा गौव एक परिवार बड़ बेर रुछि।   

बखत बदलौ , सब बदेई गो 
म्योर गौव ले अब संस्कार भूल गो , 
तलिहु जाणे दौड़ लागी रै , 
येक चक्कर मी अब म्योर गौव हरेगो।  


कुमाउँनी शब्द और हिंदी अर्थ 

( जमान - समय , ताई - ताला , एकेक - एक की , पीड़ - दुःख दर्द , बूढ़ बाड़िया- बुजुर्ग , ब्याव - साँझ , धात - आवाज , एच पेच -लेन देन , धिनाय - दूध दही , स्याणु - बुजुर्ग , बखत - समय , बदेई- बदलना , तलिहु - मैदानी भाग , हरेगो - खोना, काफल और बमौर- स्थानीय फल  )

Friday 22 February 2019

ईजा




इजेक फिक्र कभे कम नि हून ,
नानतिन ठुल ले हेगया ,
देश या परदेस ,
लाढ़ कभे कम नि हून।

आपुण पेट काट बेर ,
नानतिन पाई भायी ,
नजर नि लागो केकी ,
कदूक जतन करि भायी। 

आईले , ईज दिन रात प्रार्थना करुँ
नानतिन जाले रौ ,
हँसी ख़ुशी रौ ,
दुःख उनौर नजदीक नी ओ। 

इजोक दिल कभे झन दुखाया ,
वी हभे ठुल पाप के नेह ,
भगवानोक अवतार छू ऊ ,
ईज हभे क्वो ठुल नेह। 



कुमाउँनी शब्द और उनके हिंदी अर्थ
( नेह - नहीं , ईजा - माता जी , नानतिन - बच्चे , क्वो- कोई , लाढ़ - प्यार और स्नेह , कभे - कभी भी , ठुल - बड़ा  , उनौर- उनके, कदूक- बहुत )

Thursday 21 February 2019

भौते जाड़



ह्यू पड़ गो डाना-काना ,
सफ़ेद चद्दर जस बिछी गो , 
ग्वोर बाछ अरणी गी , 
यस ह्यून कू बजर पड़ी जो।  

आगेक मुत्थि बैठण भौल लागि गो ,
बूढ़ बाड़ियाक बाई पीड़ फिर जाग गो , 
अड़कसे हेगो यौ फेरा दाज्यू , 
रम पी बेर ले ठंड लागि गो।  

पाणी कलकलाट हेगो , 
सूखी लकाड़ोक धुआँठ हेगो ,
आण - काथ निमड़ गी अब, 
अब तो जा ठण्डा , फागुन एगो।   



( ह्यु - बर्फ , अरणी - ठंडा पड़ना , आण - काथ- पहेलियाँ , कहानी ; लकाड़ोक- लकड़ियां ; निमड़- ख़त्म होना ) 

Wednesday 2 January 2019

कुमाऊँ का मकर संक्रांति पर्व- घुघतियाँ



मकर संक्रान्ति का त्यौहार इस बार १४ जनवरी को है और यह पूरे देश में अलग अलग नाम से मनाया जाता है।  उत्तराखंड में इस त्यौहार को उत्तरायणी के नाम से भी जाना जाता है।  कहते है इसी दिन से दिन बढे होने शुरू हो जाते है।   बागेश्वर में सरयू किनारे उत्तरायणी का मेला लगता है।   कुमाऊं मंडल में इस त्यौहार को " घुघुतिया " नाम से मनाया जाता है।  "घुघुतियाँ " मनाने के पीछे बहुत सी दन्त कथाएं प्रचलित है जो तार्किक भी लगती है और इसी वजह से यह त्यौहार लोक उत्सव भी बन जाता है।   
इस दिन एक विशेष प्रकार का व्यंजन " घुघुत " बनाये जाते है। 

सबसे पहले पानी गरम करके उसमें गुड़ डालकर चाश्नी बना ली जाती है, फ़िर आटा छानकर इसे आटे में मिलाकर गूँथ लिया जाता है। जब आटा रोटी बनाने की तरह तैयार हो जाता है तो आटे की करीब ६” लम्बी और कनिष्का की मोटाई की बेलनाकार आकृतियों को हिन्दी के ४ की तरह मोड़्कर नीचे से बंद कर दिया जाता है। इन ४ की तरह दिखने वाली आकृतियों को स्थानीय भाषा में घुघुते कहते हैं। घुघुतों के साथ साथ इसी आटे से अन्य तरह की आकृतियाँ भी बनायी जाती हैं, जैसे अनार का फ़ूल, डमरू, सुपारी, टोकरी, तलवार आदि; पर सामुहिक रूप से इनको घुघूत के नाम से ही जाना जाता है।

आटे की आकृतियाँ बन जाने के बाद इनको सुखाने के लिए फ़ैलाकर रख दिया जाता है। रात तक जब घुघुते सूख कर थोड़ा ठोस हो जाते है तो उनको घी या वनस्पति तेल में पूरियों की तरह तला जाता है। फिर बनायीं जाती है मालाएं , जिन्हे बच्चे अगले दिन सुबह सुबह गले में डालकर चिल्लाते है - " काले कौव्वे काले , घुघूती माला खा ले "

सुबह एक कटोरे में कुछ घुघते, बड़े और पूरियाँ डालकर घर की छत या खुले में रख दिए जाते है और फिर "कौव्वे" आकर उन्हें उठा ले जाते है और उनको कही छुपाकर फिर दूसरे घर की तरफ चले जाते है।  साल भर दुत्कार खाने वाला यह पक्षी उस दिन बड़ा सम्मानीय हो जाता है।   

आप अगर १५ जनवरी को कुमाऊं की तरफ जाएँ और सुबह सुबह अगर ये शोर सुनने को मिले तो समझ जाइएगा की " घुघुत " खाने के लिए कौवो को बुलाया जा रहा है। 
बाकि घुघतो को बड़े चाव से खाया जाता है और यह पकवान जल्दी ख़राब भी नहीं होता।   तो तैयार रहिये " घुघतियाँ ' मनाने को और इस बार एक घुघुत विश्व शांति के लिए भी माला में पिरो लीजियेगा और हां , बच्चो की माला में संतरे या और कोई फल भी गूँथ लीजियेगा , घर में बरकत रहेगी। 

जोशीमठ

  दरारें , गवाह है , हमारे लालच की , दरारें , सबूत है , हमारे कर्मों की , दरारें , प्रतीक है , हमारे स्वार्थ की , दरारें ...