Friday 17 January 2020

पलायन



पहाड़ो से मैदानों में उतरायन हमेशा ही सरल रहा है क्यूंकि आपको ज्यादा थकान नहीं होती , मगर उतरने में पैरो में अतिरिक्त बोझ पड़ता है और चूँकि गुरुत्वाकर्षण का मामला है और आप मैदानों की तरफ बड़ी सरलता से उतर जाते हो।   एक बार जब आप मैदानों में पहुँच जाते हो तो फिर आप पहाड़ चढ़ने के संघर्ष को सोचकर ही कपकँपाने लगते हो। 
यही डर फिर आपको पहाड़ो से दूर करने लगता है और फिर धीरे धीरे आपके अंदर का पहाड़ी मन , मैदानी हो जाता है और आप पहाड़ो से दूर होते जाते हो।  फिर मैदानी भाग का जीवन संघर्ष आपको पहाड़ चढ़ने से कमतर लगने लगता है और आप "मैदानी " हो जाते हो। 

पहाड़ आपकी राह ताकता रहता है और आप "मैदानी " बनकर उसे भूल जाते हो और चंद वर्षो में पहाड़ भी आपके रिक्त स्थान को कुछ घास  उगाकर भर लेता है और धीरे धीरे वह घास या कोई पेड़ आपकी रिक्तता को भर देता है।  फिर पहाड़ आपको भूल जाता है , मगर , आपका पहाड़ी मन कुलांचे मारता है मगर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और आप फिर "मैदानी " बने रहने के पहाड़ो के श्राप से ग्रसित हो जाते हो। 

अंत में , न आप पहाड़ी रह जाते हो और न पूर्णरूपेण मैदानी।  यही यथार्थ है और यही कटु सत्य।  

जोशीमठ

  दरारें , गवाह है , हमारे लालच की , दरारें , सबूत है , हमारे कर्मों की , दरारें , प्रतीक है , हमारे स्वार्थ की , दरारें ...