Wednesday 31 January 2018

हमने उत्तराखंड क्यों माँगा था ?

सालो का संघर्ष यूँ ही नहीं हुआ था , 
अलग राज्य की चिंगारी यूँ ही नहीं धधकी थी , 
देश के सबसे बड़े सूबे से अलग होने का निश्चय , 
बातो बातो में नहीं हुआ था।  

पहाड़ो की परेशानियां ,
पहाड़ी ही समझ सकता था ,
लखनऊ में बैठ , 
कौन उत्तराखंड की सुध लेता था।  

अपने हक़ हकूक के लिए कितनो ने , 
लाल किले में डंडे खाये थे , 
कुछ तो विशेष मांग थी अलग राज्य की ,
रामपुर में यूँ ही गोलियां नहीं खायी थी।  

अंजाम तक पहुंची लड़ाई , 
नौ नवम्बर 2000 को जब सत्ताईसवा राज्य बना था ,
कितनी उम्मीदों , कितने सपनो को परवाज मिला था , 
अब चमकेगा मेरा उत्तराखंड , हरेक का मन हर्षाया था। 

अपने सपनो का उत्तराखंड बनाने का ये मौका था , 
सत्रह साल बीत गए मगर , 
विकास का रथ न जाने , 
किस ओर भटक गया था।  

मच गयी बंदरबाँट हर ओर , 
नेता बनने का सबको शौक चढ़ गया , 
गाँव के गाँव खाली हो गए , 
न जाने कितने गाँवों में ताला लटक गया।  

नुमाइंदे हमारे देहरादून जाकर वही के हो गए , 
अब पहाड़ो को कौन चढ़े , 
बड़ी मुश्किलें हैं पहाड़ो में , 
अपनी तिजोरियां भर चैन की नींद सो गए।  

सपने सब धरे रह गए , 
पहाड़ हमारे अपनों से ही छले गए , 
टीस सी उठती है मन में , 
क्या इसीलिए हमने " उत्तराखंड " माँगा था ? 

Wednesday 24 January 2018

डबल इंजन सरकार



हे ! डबल इंजन सरकार ,
अब तो करो उद्धार ,
पहाड़ो के दर्द को ,
अब महसूस करो सरकार। 

माना पिछले निक्कमे थे ,
अब हाथ आयी तुम्हारे कमान ,
इन पहाड़ो की तन्हाई को ,
दूर करो अब सरकार। 

घर घर वीरान हो रहे ,
जड़ गए कितने ताले ,
चाभी विकास की ,
घुमाओ सरकार। 

धूमिल हो रही उम्मीदें ,
दरक रहे है पहाड़ ,
कौन संभाले इनको अब ,
सोई रही बरसो सरकार। 

आयी -गयी न जाने कितनी सरकार ,
काट गए सब अपना कार्यकाल ,
"किया क्या ?" पर सब चुप है ,
किसी को नहीं है पहाड़ो का सरोकार। 

अब तुम पर ही उम्मीद है ,
तुम हो डबल इंजन सरकार ,
बसा दो इन पहाड़ो को फिर से ,
हर पहाड़ी की ये है पुकार।  

Tuesday 23 January 2018

पहाड़ रो रहे है



पहाड़ रो रहे है
उसके बाशिंदे ही अब ,
उससे मुहँ  मोड़ रहे है ,
गाँव गाँव अब उसके ,
खाली हो रहे है।

पहाड़ रो रहे है ,
जिन पर है जिम्मेदारी ,
इनको फिर से आबाद करने की ,
वो तो बस अपनी तिजोरी भर रहे है।

पहाड़ रो रहे है ,
पहाड़ का पानी ,
पहाड़ की जवानी ,
सब मैदानों को ही उतर रहे है।

पहाड़ रो रहे है ,
बचा खुचा जो रह गया ,
उसको भी आजकल ,
जंगली जानवर नोच रहे है।

पहाड़ रो रहे है ,
अब उसके पहाड़ी ही ,
अपनी हवेली छोड़ कर ,
कही दूर जाकर दुबक रहे हैं।

पहाड़ रो रहे है ,
किस्मत को रो रहे है ,
उसके अपने बच्चे ही ,
कुछ अधिक पाने की खातिर उसे छोड़ रहे है। 

पहाड़ रो रहे है ,
उसके पास शायद देने के लिए ,
वो सब कुछ नहीं है ,
इसलिए उसके अपने भटक रहे है। 

पहाड़ रो रहे है ,
क्यूंकि उसके हुक्मरान ,
ना जाने कौन सी ,
कुम्भकरणी नींद सो रहे है।  

Thursday 18 January 2018

मैं गैरसैण बोल रहा हूँ

मैं गैरसैण बोल रहा हूँ , 
कुछ लोगो की नीयत की पोल खोल रहा हूँ , 
अपने स्वार्थो के लिए कुछ लोगो ने , 
मुझसे मेरा हक़ दूर कर दिया , 
वादा करके मुझसे , 
कही और घर कर लिया। 

मैं गैरसैण बोल रहा हूँ ,
उत्तराखंड का दिल हूँ , 
हरेक के नजदीक हूँ ,
मगर कुछ स्वार्थी लोगो को खटकता  हूँ , 
इसलिए अब तक हक़ के लिए तरस रहा हूँ।  

मैं गैरसैण बोल रहा हूँ ,
पहाड़ मुझसे  ज्यादा दूर नहीं , 
मैदानों से मुझे कोई वैर नहीं , 
मैं तो अपना हक़ चाहता हूँ , 
जो वादा किया था , 
बस वह चाहता हूँ , 

मैं गैरसैण बोल रहा हूँ ,
माना मैं अभी सजा  धजा नहीं , 
लेकिन खूबसूरत मैं किसी से कम नहीं , 
प्रकृति ने नवाजा है मुझे , 
अब बारी तुम्हारी है अपना वचन निभाओ तो सही।  

मैं गैरसैण बोल रहा हूँ ,
यहाँ से मैं सब कुछ देख सकता हूँ , 
पूरे उत्तराखंड में नजर रख सकता हूँ , 
जब भी जरुरत पड़ेगी किसी को भी ,
तुरंत पहुंच सकता हूँ।  

 मैं गैरसैण बोल रहा हूँ ,
आओ , की बसाओ मुझे , 
आह्वान आप सबका करता हूँ , 
आबाद करो मुझे , 
मैं उत्तराखंड की धड़कन बनने को तैयार हूँ।  

Monday 15 January 2018

पहाड़ी इजेक - च्योल कू सीख


जा ले रैये , खुश रै 
बाँटने रे प्यार , 
कैहू झकोड़ झन करिये , 
हमार तैश नेथिन संस्कार।  

सबहु मीठ बुलाए , 
ठुलोक इज्जत करिये , 
नान - नान्तिनो की दिए प्यार , 
भल भल खे , 
नि लिहे कहूं उधार।  

काम ध्यानेन करिये , 
मन लगै खूब , 
खर्च पाणी भेजने रै , 
मी बुढ़ि गौ मी छू ठीक।  

छुट्टी मिलला , उन रे 
गौ ले चैड़ भोय जरूर , 
या जस का भोय और के ,
निमेल घाम , ठंड पाणी 
फ्री में का मिलु , 
ताजी हाव खाऊ ,
द्यु -चार दिनेक छुट्टी ,
मांग लिये, 
और झट अ जाये , 
आपुण घर द्वार।  

Thursday 11 January 2018

पहाड़ी की हुँकार



मैं पहाड़ी हूँ - पहाड़ो से आया हूँ,
साथ अपने न जाने कितनी सौगातें लाया हूँ।
तरसते है जब लोग हवा को ,
मैं ठंडी हवायें लाया हूँ।

आर ओ का पानी पीने वालो ,
मैं बहती नदियाँ का पानी पीकर आया हूँ।
रिश्तो को जब भूल रहे लोग ,
मैं - ईज़ा , बौज्यू , दद्दा , भूलि साथ लाया हूँ।

जाते होंगे तुम लोग जिम में फिट रहने के लिए ,
मैं तो अपने पहाड़ घूम आया हूँ।
बंद कमरे में ए सी की हवा खाने वालो ,
मैं खुले आसमान के नीचे ठंडी हवा पाया हूँ।

मैं पहाड़ी हूँ , पहाड़ो से आया हूँ ,
जिगर में अपने पहाड़ो की हिम्मत लाया हूँ।
दिखता भले ही सीधा सादा हूँ ,
संघर्ष की दास्तान लाया हूँ।

जब तक शान्त हूँ , ठीक है ,
बिगड़ गया तो , तूफ़ान लाया हूँ।
तुलना मत करना - याद रखना ,
तरकश में अपने सारे तीर लाया हूँ।

कही भी रहूँ दुनिया में ,
यादो की गठरी साथ लाया हूँ।
ताल ठोक कर कहता हूँ ,
मैं पहाड़ी हूँ।
जिस उच्चाई की तुम बात करते हो ,
वो मैं , कब का चढ़ आया हूँ।

Tuesday 9 January 2018

होइ , मी पहाड़ी छू



होइ , मी पहाड़ी छू , 
तुमर हबे लाख गुण भौल छू ,
मी सीध साद छू , 
मगर कर्मठ छू , 
होइ , मी पहाड़ी छू।  

यो तो म्यर गर्व छू , 
पहाड़ो मी च्यौल छू ,
ज्यादे ओछाहट नि करन   , 
आपुण काम भलीके करूँन  ,
यो तो म्यर पहाड़ रिवाज छू , 
होइ , मी पहाड़ी छू।  

बुद्धि , बल , विवेक मी , 
केके हबे कम नी हुन , 
अजमा लेहो कभे ले , 
एक पहाड़ी दस बराबर हुन।  

सीद साद खाण -पीण हमौर , 
कपड़ो मी नि हुन चमचमाट , 
थोड़ा मी ले खुश है जानु , 
ज्यादेक नि हुन कुलबुलाट। 

आपुण संस्कृति कू बचे बे रु , 
गौव की चिंता मी रु , 
चाहे , कै ले रून , 
मी पहाड़ी छू और हमेशा पहाड़ी रुन। 

Saturday 6 January 2018

हिटो ददा भूली , हिटो भे -बेणियओ


हिटो ददा भूली , हिटो भे -बेणियओ- पहाड़ बुलौनी !
नौव ठण्ड पाणी , बांज बूझाणी - सब धात लगौनी !!

पौरो  की बखई, धार मी कौ घाम - सब तरसनि !
गद्दुआ का झाल , उ भट्टाक डुबुक - तुमर राह देखणी !!

आलूक गुटुक - काकड़ फूलुन - तुमकू बुलौनी !
का छा रे नान्तिनो - गोल्ज्यू और गंगनाथ ज्यूँ बुलौनी !!

आमेक बुबु फसक - गुड़ कटक चाह -धरिये रौनी !
आपण नान्तिनो लीजि पहाड़ आंस बहूनि !!

उजाड़ गौव , शुद्ध हाव -पाणी, हरी भरी जंगाव !
कबे बट्टी तुमौर राह देखनि !!

ए , जाओ रे म्यर नान्तिनो !
धार मी बट्टी म्यर पहाड़ा आवाज लगौनि !! 

Wednesday 3 January 2018

जय हो - उत्तराखंड



जय हो केदारा , जय हो मानस खंड 
जय जय जय हो म्यर उत्तराखण्ड।  

तपोभूमि तू , देवभूमि तू , 
तू छे शिवजी कौ कैलाशा।  

गंगा यमुना त्येरी चेलियाँ ,
कण कण मी भगवानो वासा।  

जय हो केदारा , जय हो मानस खंड 
जय जय जय हो म्यर उत्तराखण्ड।  

गढ़वाल और कुमाऊं त्यारा द्वी हाथा , 
भाभर छू अन्न कौ भकारा।  

बद्री तू , केदार ज्यू तू , 
नंदादेवी छू मुकुटौ हिमाला।  

जय हो केदारा , जय हो मानस खंड 
जय जय जय हो म्यर उत्तराखण्ड।  

हरिद्वार तू , पार्वती को सरासा 
ऋषियों की तपोभूमि , तू छै शिवज्यू का वासा। 

वीरो की कर्मभूमि , शेणियो कौ सम्माना ,
करणी आज तुकै त्यार- नानतिन प्रणामा।  

जय हो केदारा , जय हो मानस खंड 
जय जय जय हो म्यर उत्तराखण्ड।  

जोशीमठ

  दरारें , गवाह है , हमारे लालच की , दरारें , सबूत है , हमारे कर्मों की , दरारें , प्रतीक है , हमारे स्वार्थ की , दरारें ...