Tuesday, 23 January 2018

पहाड़ रो रहे है



पहाड़ रो रहे है
उसके बाशिंदे ही अब ,
उससे मुहँ  मोड़ रहे है ,
गाँव गाँव अब उसके ,
खाली हो रहे है।

पहाड़ रो रहे है ,
जिन पर है जिम्मेदारी ,
इनको फिर से आबाद करने की ,
वो तो बस अपनी तिजोरी भर रहे है।

पहाड़ रो रहे है ,
पहाड़ का पानी ,
पहाड़ की जवानी ,
सब मैदानों को ही उतर रहे है।

पहाड़ रो रहे है ,
बचा खुचा जो रह गया ,
उसको भी आजकल ,
जंगली जानवर नोच रहे है।

पहाड़ रो रहे है ,
अब उसके पहाड़ी ही ,
अपनी हवेली छोड़ कर ,
कही दूर जाकर दुबक रहे हैं।

पहाड़ रो रहे है ,
किस्मत को रो रहे है ,
उसके अपने बच्चे ही ,
कुछ अधिक पाने की खातिर उसे छोड़ रहे है। 

पहाड़ रो रहे है ,
उसके पास शायद देने के लिए ,
वो सब कुछ नहीं है ,
इसलिए उसके अपने भटक रहे है। 

पहाड़ रो रहे है ,
क्यूंकि उसके हुक्मरान ,
ना जाने कौन सी ,
कुम्भकरणी नींद सो रहे है।  

1 comment:

  1. सच है मगर पूरी प्लानिंग तो यही है कि सबको भगाओ और सारी प्रोपर्टी सरकार की, तभी तो सर्कल रेट भी ४००% बढ़ा दिया गया।

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जोशीमठ

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