पहाड़ रो रहे
है
उसके बाशिंदे
ही अब ,
उससे मुहँ मोड़ रहे है ,
गाँव गाँव
अब उसके ,
खाली हो रहे
है।
पहाड़ रो रहे
है ,
जिन पर है
जिम्मेदारी ,
इनको फिर
से आबाद करने की ,
वो तो बस
अपनी तिजोरी भर रहे है।
पहाड़ रो रहे
है ,
पहाड़ का पानी
,
पहाड़ की जवानी
,
सब मैदानों
को ही उतर रहे है।
पहाड़ रो रहे
है ,
बचा खुचा
जो रह गया ,
उसको भी आजकल
,
जंगली जानवर नोच रहे है।
पहाड़ रो रहे
है ,
अब उसके पहाड़ी
ही ,
अपनी हवेली
छोड़ कर ,
कही दूर जाकर
दुबक रहे हैं।
पहाड़ रो रहे
है ,
किस्मत को
रो रहे है ,
उसके अपने
बच्चे ही ,
कुछ अधिक
पाने की खातिर उसे छोड़ रहे है।
पहाड़ रो रहे
है ,
उसके पास
शायद देने के लिए ,
वो सब कुछ
नहीं है ,
इसलिए उसके
अपने भटक रहे है।
पहाड़ रो रहे
है ,
क्यूंकि उसके
हुक्मरान ,
ना जाने कौन
सी ,
कुम्भकरणी
नींद सो रहे है।
सच है मगर पूरी प्लानिंग तो यही है कि सबको भगाओ और सारी प्रोपर्टी सरकार की, तभी तो सर्कल रेट भी ४००% बढ़ा दिया गया।
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