Friday, 9 February 2018

पहाड़ो की उम्मीद अब भी बाकि है




पहाड़ो की उम्मीद अब भी बाकि है ,
क्यूंकि पहाड़ी अब भी पहाड़ो से दूर नहीं है ,
सुलगती रहती है यादो की चिंगारी अब भी मन में ,
उन हसीं वादियों को छोड़ने की कसक अब भी है।  

माना की कुछ कारणों से थोड़ा जुदाई है , 
मगर अब भी पहाड़ो की यादें उसके दिल में बसती है , 
देर सबेर लौटकर आना ही है , 
ऐसा स्वर्ग और कहाँ मिलना है ?

शरीर भले ही कही भी हो , 
मन तो इन पहाड़ो में ही रमता है , 
ठंडी हवा , ठंडा पानी और भी बहुत कुछ  , 
हमें पहाड़ो से जोड़े रखता है।  

फूलदेई , घी संक्रांत , उत्तरायणी कौतिक 
झोड़े चांचरी और होलियो में होआर 
कब तक दूर रह सकता है , 
नस नस में बसे है पहाड़ी संस्कार।  

दिन दूर नहीं जब पहाड़ का पानी , 
और पहाड़ की जवानी फिर पहाड़ के काम आएगी , 
फिर पहाड़ हरे भरे होंगे , 
क्यूंकि मैदानों में घुटन की उम्र ज्यादा नहीं है।  

पहाड़ो की उम्मीद अब भी बाकि है , 
मिटटी की खुसबू अब भी जेहन में ताज़ी है , 
खुलेंगे बंद द्वार फिर से , 
क्यूंकि इन पहाड़ो का कोई सानी नहीं है।  

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