Saturday, 14 April 2018

एक पहाड़ी शेणी आपबीती


तुम जाहूं एडवेंचर कूछा , ऊ हम रोज़ करनू 
हम पहाड़ा शेणी , रोज ज्यान हाथ मी धरनू।  

बांज काटहु एक फांग मि चढ़ जानु , 
शौक ने यो हमर , मजबूरी छू , 
दोड़ मी गोर बाछ छीन , 
उनेर पेट लेह भरण छू।  

आसान नेह हो दाज्यू , यो पहाड़ा जीवन 
दिन रात मेहनत करण पडू , 
उकाव , भ्योह सब एक करण पडू ,
दुय रोटा खातिर सब करण पडु।  

हाथ मी दाथुल , कमर मी ज्योड़ 
राति निकल जानु , 
घाम तेज हूण हबे , 
पैली घर घटव पहुँचा दिनु।  

फिर घरेक काम ले भाइय , 
नान्तिना खान पीण , 
कपड़ लेह धौंण भाइय , 
आपुण लीजी रती भर टेम नि रून, 
भौनो बोज्यू दिनभर ताश खेलबेर ,
ब्याहु दारू पी बेर " कै करो त्यूल " कुनो भाइय।  

असोज जस मेरी ज़िन्दगी , 
जेठेक जस घाम हेगे , 
मी पहाड़ शेणी हो दाज्यू , 
जवानी मी बूढ़ी हेगे।  

1 comment:

  1. आप का ये विचार और ये पंतिया गजब की है।

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जोशीमठ

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