छोलिया
नृत्य को स्मरण करते ही पहाड़ो की शादियों की याद आ जाती है जब कुछ छोल्यार हाथो में
तलवार और ढाल लिए ढोलक ( दमाऊ ) की ताल पर अद्भुत नृत्य करते है। जैसा ढोल बजता है , नर्तक उसी अनुसार अपने शरीर के सब अंगो को हिलाते हुए
अपनी भाव भंगिमाओं से देखने वालो को एक अलग ही दुनिया में ले जाते है।
कहते
है ख़स राजाओ के समय से यह नृत्य चला आ रहा है और जनश्रुतियो के अनुसार इस नृत्य शैली
के विकसित होने का एक कारण बड़ा प्रचलित है।
उस काल में जब कोई राजा युद्ध जीतकर आया तो वह युद्ध की कहानी अपनी रानियों
को सुना रहा था तो रानियां बहुत प्रभावित हुई और उन्होंने भी युद्ध देखने की इच्छा
जताई मगर सामाजिक बंधनो और सुरक्षा का हवाला देकर राजा ने उनकी इच्छा को अस्वीकार कर
दिया मगर युद्ध क्षेत्र में क्या होता है , वो प्रतीकात्मक तौर पर अपनी रानियों को
दिखाने के लिए उसने राजदरबार में ही युद्ध क्षेत्र को रचने का निर्णय लिया और दो गुट बनाकर उन्हें सैनिको जैसे कपडे और तलवार , ढाल दिए
और दमाऊ की आवाज पर उन्हें अभिनीत करने का आदेश दिया। यह नृत्य
राजदरबारियों और रानियों को बहुत पसंद आया और फिर इसका आयोजन हर साल होने लगा। कालान्तर में यह नृत्य कुमाऊँ क्षेत्र में जन नृत्य
बन गया और फिर धीरे धीरे शादियों में भी किया
जाने लगा।
यह
एक तलवार नृत्य है, जो प्रमुखतः शादी-बारातों या अन्य शुभ अवसरों पर किया जाता है।
यह विशेष रूप से कुमाऊँ मण्डल के पिथौरागढ़, चम्पावत, बागेश्वर और अल्मोड़ा जिलों में
लोकप्रिय है।
इस
नृत्य में नर्तक युद्ध जैसे संगीत की धुन पर क्रमबद्ध तरीके से तलवार व ढाल चलाते हैं,
जो कि अपने साथी नर्तकियों के साथ नकली लड़ाई जैसा प्रतीत होता है। वे अपने साथ त्रिकोणीय
लाल झंडा (निसाण) भी रखते हैं। नृत्य के समय नर्तकों के मुख पर प्रमुखतः उग्र भाव रहते
हैं, जो युद्ध में जा रहे सैनिकों जैसे लगते हैं।
इसके
अतिरिक्त छोलिया नृत्य का धार्मिक महत्व भी है। इस कला का प्रयोग अधिकतर राजपूत समुदाय
की शादी के जुलूसों में होता है। छलिया को शुभ माना जाता है तथा यह भी धारणा है की
यह बुरी आत्माओं और राक्षसों से बारातियों को सुरक्षा प्रदान करता है।
छोलिया नृत्य में कुमाऊं के परंपरागत वाद्ययंत्रों का प्रयोग किया जाता है, जिनमें तुरी, नागफनी
और रणसिंह प्रमुख हैं।
नर्तक
पारंपरिक कुमाउँनी पोशाक पहनते हैं, जिसमें
सफेद चूड़ीदार पायजामा, सिर पर टांका, रंगीला चोला तथा चेहरे पर चंदन का पेस्ट शामिल
हैं। तलवार और पीतल की ढालों से सुसज्जित उनकी यह पोशाक दिखने में कुमाऊं के प्राचीन
योद्धाओं के सामान होती है।
अब
आमतौर पर यह नृत्य रंगमंच पर या यदाकदा ही किसी शादी में देखने को मिलता है। राज्य सरकार को इस नृत्य के सरंक्षण के उपाय सुनिश्चित
करने चाहिए ताकि सदियों से चली आ रही यह नृत्य विधा विलुप्त न हो जाये।
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ReplyDeleteplz reply me
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