पहाड़ो में सर्दियों के दिनों में प्रायः एक दाल का महत्वपूर्ण स्थान है , वह है गहत। सर्दियों में इस दाल का सेवन पहाड़ो में सेहतमंद और फायदेमंद है क्यूंकि इस दाल की तासीर गर्म होती है और इस दाल में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होता है। सर्दी के मौसम में नवंबर से फरवरी माह तक इस दाल का उपयोग बहुतायत में किया जाता है। गहत का वानस्पतिक नाम है " डौली कॉस बाईफ्लोरस” और इसे हिंदी में कुल्थी नाम से भी जाना जाता है।
यह दाल खरीफ की फसल में शुमार है और आमतौर पर पहाड़ो में उगाई जाने वाली दाल का रंग भूरा होता है । कहा जाता है की डायनामाइट का इस्तेमाल करने से पहले चट्टानों को तोड़ने के लिए इस दाल का उपयोग किया जाता था। इसके लिए बड़ी-बड़ी चट्टानों में ओखली नुमा छेद बनाकर उसे गर्म किया जाता था और गर्म होने पर छेद में गहत का तेज गर्म पानी डाला जाता था। जिससे चट्टान चटक जाती थी।
गहत की दाल का रस गुर्दे की पथरी में काफी लाभकारी है। इसके रस का लगातार कई माह तक सेवन करने से स्टोन धीरे-धीरे गल जाती है। आयुर्वेद के अनुसार गहत की दाल में विटामिन 'ए' पाया जाता है, यह शरीर में विटामिन 'ए' की पूर्ति कर पथरी को रोकने में मदद करता है। गहत की दाल के सेवन से पथरी टूटकर या धुलकर छोटी हो जाती है, जिससे पथरी सरलता से मूत्राशय में जाकर यूरिन के रास्ते से बाहर आ जाती है। मूत्रवर्धक गुण होने के कारण इसके सेवन से यूरिन की मात्रा और गति बढ़ जाती है, जिससे रुके हुए पथरी के कण पर दबाव ज्यादा पड़ता है और दबाव ज्यादा पड़ने के कारण वह नीचे की तरफ खिसक कर बाहर आ जाती है।
उत्तराखंड में 12,319 हेक्टेयर क्षेत्रफल में इसकी खेती की जाती है। अल्मोड़ा , टिहरी , नैनीताल , पिथौरागढ़ , बागेश्वर आदि जिलों में यह बहुतायत में उगाई जाती है। तो खाइये इन सर्दियों में - गहत की दाल।
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ReplyDeleteGreat Sir...
ReplyDeleteSuperb sir nice..
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