Thursday, 1 November 2018

कुमाउँनी गीतों के किशोर कुमार - गोपाल बाबू गोस्वामी



याद है आपको - "घुघुती न बासा", "कैलै बजै मुरूली", "हाये तेरी रुमाला", "भुर भुरु उज्याव हैगो" , "अलबेरे बिखौती , म्येरि दुर्गा हरेगे ","हिमाला को ऊँचो डाना प्यारो मेरो गाँव", "छोड़ दे मेरो हाथा में ब्रह्मचारी छों","छविलो गढ़वाल मेरो रंगीलो कुमाऊं",- तो आप उस महान कुमाउनी गायक गोपाल बाबू गोस्वामी को भी जानते होंगे ?   कुमाउनी गीतों के इस किशोर कुमार के गीतों का एक समय पूरे कुमाऊं मंडल  में गायकी में राज था। 

" न रो चेली न रो मेरी लाल, जा चेली जा सरास " हर बेटी के विदाई के वक्त जब बजता था , तो घर वालो के साथ बारातियो की आँखों में भी आंसू आ जाते थे। 
"हरु -हीत " और "राजुला -मालूशाही " लोककथाओं को संगीतबद्ध करके जन -जन तक पहुंचाने का काम गोपाल बाबू गोस्वामी ने किया।  उनके ऑडियो कैसेट एक वक्त सबके घरो में उपलब्ध हुआ करते थे। 

अल्मोड़ा के चौखुटियाँ तहसील के चाँदीखेत नामक गाँव से 2 फरवरी ,1941 से शुरू हुआ उनका सफर कई उतार चढ़ाव से गुजरते हुए 26 नवम्बर 1996 को समाप्त हुआ।    इस सफर में आकाशवाणी , हिरदा कैसेट  के माध्यम से उनके गीत और आवाज कुमाऊं के अंचलो से होते हुए हर पहाड़ी के मन और मस्तिष्क में घर कर गयी।  12 साल की उम्र से उन्होंने जो गीत लिखने शुरू किये तो अपने जीवन काल में उन्होंने लगभग 500 गीत लिख डाले।

उनकी आवाज में एक पहाड़ी खनक थी , ऐसा लगता था जैसे दूर पहाड़ो से कोई आपको बरबस पुकार रहा हो और आप उस आवाज को सुनने को मचल उठे हो।   उन्होंने पहाड़ के हर रंग को अपने गीतों में ढाला।   पहाड़ो की परम्पराएं , रीति रिवाज , सामाजिक चेतना , सुख-दुःख - सभी को अपने गीतों में पिरोया और फिर अपनी मधुर आवाज से ऐसे संगीतबद्ध किया की - वो हर पहाड़ी को अपनी आवाज लगी। 

"कैले बजे मुरली " में उन्होंने विरह गीत पेश किया तो " अलबेरे बिखौती , म्येरि दुर्गा हरेगे " में छेड़छाड़ प्रस्तुत किया।  उनके गाये गीतों में पहाड़ छलकता था , पहाड़ के सुख दुःख बयां होते थे।  मैं भाग्यशालो हूँ की मैंने गोपाल बाबू गोस्वामी के उस दौर को जीया है और उनके गए गीतों को ही सुनकर बढ़ा हुआ।  आज भी उनके गाये  गीत सुनता हूँ तो कही भी रहूँ , फिर से ऐसा लगता है - की पहाड़ो में जी रहा हूँ। ठंडी ठंडी हवा के झोंके , वो उजला आसमान और एक खनकती आवाज - जो बरबस याद दिलाती है - "हिमाला को ऊँचो डाना, प्यारो मेरो गाँव" । 
जरूर सुनियेगा - पहाड़ो की खनकती इस आवाज को।


फोटो साभार - गूगल 

5 comments:

  1. आहा क्या याद दिलाई लेखक श्री आनंद बाबु जी वाह👌👌👌
    एक महान कलाकार स्वर्गीय श्री गोस्वामी जी सदा अपने गीतों से हमारे दिलो में राज करते रहेंगे हमेशा

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  2. बहुत ही बढ़िया।

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  3. Jio Anand bhai... Iss lekh ko parkar mai fir se sun 80 v 90 ke daur mai chala gaya hun jahan iss Mahaan geetkaar ke anar sangeet ne humara bachpan seencha hai... lage raho guru.. Jai Devbhoimi

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  4. Jio Anand bhai... Iss lekh ko parkar mai fir se sun 80 v 90 ke daur mai chala gaya hun jahan iss Mahaan geetkaar ke anar sangeet ne humara bachpan seencha hai... lage raho guru.. Jai Devbhoimi

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  5. Yes he was a very good singer

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जोशीमठ

  दरारें , गवाह है , हमारे लालच की , दरारें , सबूत है , हमारे कर्मों की , दरारें , प्रतीक है , हमारे स्वार्थ की , दरारें ...