ह्यून एगो पहाड़ो मी ,
राति ब्याव जाड़ ,
हाथ खुटा अकड़ गी ,
जल्दी जलाओ आग।
रजे -कंबल निकालो अब ,
ऊनी कपड़ोल ढको तन ,
बूढ़ बाड़िया ध्यान धरो ,
"बाई बात " नि हो केकू दर्द।
नानतिन अब नानतिनेन भाय ,
उनको केहू जाड़ ,
धिरक धिरक बेर इत्था उत्था ,
शरीर कर रूनी आपुण गर्म।
घाम मी बैठ बेर ,
फसक मारणि दिन ,
ह्यून एगो पहाड़ो मी ,
बनेन बुननि दिन।
भौते ठंड हूँ हो पहाड़ो मी ,
करिया आपुण आपुण जतन ,
प्रार्थना छू सब दाज्युओं ,
कम पिया हो रम।
ha..ha kum pia ho rum
ReplyDeleteभौते भाल लाइन लेखि रेइ हो मेहरा ज्यु तमुल।
ReplyDeleteआशा करुनु कि और मिलल हमुके हगिलके पढनु ।
धन्यवाद
महेन्द्र बिष्ट