Friday, 8 January 2021

पहाड़ो की एक शाम

सूरज उत्तर रहा धीरे धीरे , 

जाने को तैयार उस पहाड़ से नीचे , 

गाय बैल सब वापस लौट रहे , 

"खट्ट खट्ट" उनके खुर बोले , 

हाँकता ला रहा मुन्ना , 

एक गाय की पूँछ मरोड़े , 

एक बुढ़ी अम्मा धारे में , 

पानी की गागर भरे , 

घर की बहू , 

क्या पकाना है सोचे , 

कुछ लोग लौट रहे दुकानों से , 

जैसे कुछ बड़ा काम करके लौटे , 

छिलुके कुछ इक्कट्ठा कर , 

घर की बड़ी बिटिया चूल्हा झोंके ,

शिवालय का घंटा बजे , 

घस्यारान के गठव बंधे , 

ऊँचे डानो में अब घाम बचा , 

दूर हिमालय अपना रंग बदले, 

थके हारे सब पशु , पक्षी , नर नारी 

अपने अपने घर लौटे , 

बस थोड़ी देर में अब ये दिन , 

रात को हवाले कर पहाड़ो में ढले।     

होती होंगी शाम जवाँ कही , रंगीन रातें कहीं , 

पहाड़ो में शाम उदास और राते खामोश ही होती है।   


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