सूरज उत्तर रहा धीरे धीरे ,
जाने को तैयार उस पहाड़ से नीचे ,
गाय बैल सब वापस लौट रहे ,
"खट्ट खट्ट" उनके खुर बोले ,
हाँकता ला रहा मुन्ना ,
एक गाय की पूँछ मरोड़े ,
एक बुढ़ी अम्मा धारे में ,
पानी की गागर भरे ,
घर की बहू ,
क्या पकाना है सोचे ,
कुछ लोग लौट रहे दुकानों से ,
जैसे कुछ बड़ा काम करके लौटे ,
छिलुके कुछ इक्कट्ठा कर ,
घर की बड़ी बिटिया चूल्हा झोंके ,
शिवालय का घंटा बजे ,
घस्यारान के गठव बंधे ,
ऊँचे डानो में अब घाम बचा ,
दूर हिमालय अपना रंग बदले,
थके हारे सब पशु , पक्षी , नर नारी
अपने अपने घर लौटे ,
बस थोड़ी देर में अब ये दिन ,
रात को हवाले कर पहाड़ो में ढले।
होती होंगी शाम जवाँ कही , रंगीन रातें कहीं ,
पहाड़ो में शाम उदास और राते खामोश ही होती है।
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