उतरैणी कौतिक , सरयू
और गोमती का बगड़ ,
लिया पहाड़ ने एक प्रण
- लेकर हाथ में सरयू का जल ,
ख़त्म करेंगे अब गुलामी
, चाहे हो जाये अब रण ,
ठगना बंद करेंगे अँग्रेजो
का , चालीस हजार आवाजे उठी एक संग ,
बहा दिए रजिस्टर , किया
घोर शंखनाद
बद्री दत्त पांडेय जी
ने भरी एक हुँकार ,
बहा ले गयी सरयू -ख़त्म
समझो कुली बेगार ,
हतप्रभ "डायबल"
चौंक उठा , घमंड उसका चूर हुआ
कुमाऊँ के बागेश्वर में
"रक्तहीन क्रांति " का पहला आगाज हुआ।
नमन , अभिनन्दन और वंदन
- बागनाथ जी ,
गोमती के तट को , सरयू
के जल को ,
कुमाऊं को , गढ़वाल को
,
उतरैणी कौतिक को , उस
बगड़ को ,
शामिल हरेक जन को ,
सौ साल बीत गए , मगर
, मत भूलिए क्रांति के उस पल को ,
मनाते रहिये उतरैणी कौतिक
को।
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