Thursday, 14 January 2021

कुली बेगार प्रथा और उत्तरायणी - 14 जनवरी 1921

 


उतरैणी कौतिक , सरयू और गोमती  का बगड़ ,

लिया पहाड़ ने एक प्रण - लेकर हाथ में सरयू का जल ,

ख़त्म करेंगे अब गुलामी , चाहे हो जाये अब रण ,

ठगना बंद करेंगे अँग्रेजो का , चालीस हजार आवाजे उठी एक संग ,

बहा दिए रजिस्टर , किया घोर शंखनाद

बद्री दत्त पांडेय जी ने भरी एक हुँकार ,

बहा ले गयी सरयू -ख़त्म समझो कुली बेगार ,

हतप्रभ "डायबल" चौंक उठा , घमंड उसका चूर हुआ

कुमाऊँ के बागेश्वर में "रक्तहीन क्रांति " का पहला आगाज हुआ।

 

नमन , अभिनन्दन और वंदन - बागनाथ जी ,

गोमती के तट को , सरयू के जल को ,

कुमाऊं को , गढ़वाल को ,

उतरैणी कौतिक को , उस बगड़ को ,

शामिल हरेक जन को ,

सौ साल बीत गए , मगर , मत भूलिए क्रांति के उस पल को ,

मनाते रहिये उतरैणी कौतिक को। 

 

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