सब पाख में चढ़नी
तो आपुण धूरि मी नि चड़न चेन ,
आपुण चद्दर देख बेर ,
खुट फैलुन चेन।
जमान बढ़ दिखावटी एगो ,
दुहौर कू देखबेर ,
आपुण रंग ढंग नि ,
बदौव चेन।
मेस भौते बदल गी अब ,
उनौर बात सुणी बेर ,
आपुण घरेक सुखचैन ,
नि बिगाड़न चेन।
आपुण कर्म भौल करो ,
फिर के चिंता नेह ,
फलेक चिंता भगवान करौल ,
बढ़िया नीन उड़ चेन।
पाख - छत , धूरि - छत पर बनी चिमनी
, बदौव - बदलना, दुहौर - दूसरे को , फैलुन - फैलाना , मेस - लोग , सुणी - सुनने , बिगाड़न
– बिगाड़ना, भौल - अच्छे , करौल- करेगा , नीन - नींद
गजब ! गागर मी सागर भर रौ। लेखने रौ कवि साहब , कुमाउँनी भाषा तुम्हौर ऋणी रौल।
ReplyDeleteBahut bhal lekho dajyu
ReplyDeleteBahut badiya sir
ReplyDeleteमस्त....👍👌
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ReplyDeleteभौते भल लिखो आपुणे।
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