Monday, 20 July 2020

पहाड़ो में सावन


सावन में जब आकाश से , 
मेघो की फुहार बन बूँदे गिरती है , 
रिमझिम जब ये कई दिनों तक , 
बरसती रहती है , 
होना तो रूमानी चाहिए इस मौसम में , 
मगर पहाड़ में  चिंता लगी रहती है , 
न जाने कहाँ अब बादल फट जाए , 
न जाने कहाँ से छत चूँ जाये , 
न जाने कौन सा गधेरा उफान मारे , 
न जाने नदी इस बार कौन सा खेत बहा ले जाये , 
न जाने अब जंगल से चारा कैसे लाया जाये , 
न जाने कैसे गीली लकड़ियों से आग जलाई जाये ,
न जाने कहाँ से पहाड़ खिसक आये ,
न जाने कौन सा जानवर फिसलते रास्तो में घुरी जाये , 
न जाने कौन सा रास्ता इस बार बह जाये।  

पहाड़ो का सावन हरियाली तो लाता है , 
मगर ब्याज में बहुत कुछ छोड़ जाता है , 
गिरे  पहाड़ , 
टूटी सड़के , 
आधे खेत , 
टपकती छत , 
और सावन की बीतने की कामना करते , 
तमाम पहाड़ी लोग, 
पहाड़ो में सावन , 
रूमानी कम , डरावना ज्यादा होता है।  

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