सावन में जब आकाश से ,
मेघो की फुहार बन बूँदे गिरती है ,
रिमझिम जब ये कई दिनों तक ,
बरसती रहती है ,
होना तो रूमानी चाहिए इस मौसम में ,
मगर पहाड़ में चिंता लगी रहती है ,
न जाने कहाँ अब बादल फट जाए ,
न जाने कहाँ से छत चूँ जाये ,
न जाने कौन सा गधेरा उफान मारे ,
न जाने नदी इस बार कौन सा खेत बहा ले जाये ,
न जाने अब जंगल से चारा कैसे लाया जाये ,
न जाने कैसे गीली लकड़ियों से आग जलाई जाये ,
न जाने कहाँ से पहाड़ खिसक आये ,
न जाने कौन सा जानवर फिसलते रास्तो में घुरी जाये ,
न जाने कौन सा रास्ता इस बार बह जाये।
पहाड़ो का सावन हरियाली तो लाता है ,
मगर ब्याज में बहुत कुछ छोड़ जाता है ,
गिरे पहाड़ ,
टूटी सड़के ,
आधे खेत ,
टपकती छत ,
और सावन की बीतने की कामना करते ,
तमाम पहाड़ी लोग,
पहाड़ो में सावन ,
रूमानी कम , डरावना ज्यादा होता है।
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