कवि जगत के अपने पुरोधा को ,
आज सदर नमन और अभिनन्दन ,
रचा बसा था जिनके अंदर पहाड़ ,
कलम से निकली थी अटूट धार ,
वो " पंत " थे कौसानी से ,
धन्य किया जिन्होंने काव्य संसार।
हे ! पूर्वज मेरे - कलम मैंने भी थामी है ,
पदचिन्हो पर आपके ,
कुछ दूर तक चलने की ठानी है ,
तुम बरगद से खड़े सामने ,
मैं अभी उगता झाड़।
छायावाद के प्रमुख स्तंभ ,
युग पथ, सत्यकाम, शिल्पी, सौवर्ण, चिदम्बरा, पतझड़, रजतशिखर, तारापथ के रचनाकार ,
धन्य हुई वो भूमि ,
जहाँ जन्मे शब्दों के आप शिल्पकार।
बहुत शानदार । कौसानी की आवो हवा मे ही कविता है लगता। 👌👌👌💐💐💐
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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