Monday, 5 March 2018

फूलदेई




लहगो रंगील फागुणा , 
होई बग गी गाढ़ा , 
अब एगो बसंत देखो , 
एगो चैतेक  म्हणा।  

मुरुली बाजी ऊँचा डाना ,
हिया लागो उदासा  , 
घुघति अब घुराण फेगे , 
कब आला म्यार सुआ तुम पहाड़ा ।  

बुरुशी अब खिलड़ फेगे , 
कब आलो  फूलदेई त्यारा  ,
घर घर जुना सब , 
माँगन सबु कुसाबाता।

चुन चुन बेर फूल ल्यूना ,
सबु देई चढूना ,
आशीष दिया हो द्याप्तो ,
म्यार गौव - गाड़ हरी भरी धरिया। 

भिटोली आली अब मैत बट्टी , 
आल भे बेण म्यार मुख धी , 
सबकु भौल धरिया हो गोल्ज्यू , 
अर्ज़ छू म्यर तुम्हो धी।  

1 comment:

बूढ़ी अम्मा

 पहाड़ सी ज़िन्दगी हो गयी ,  सब कुछ होते हुए भी कुछ न था ,  सब छोड़कर अकेले उसे ,  पहाड़ ही कर गए थे।   जिद्दी अम्मा भी थी ,  कितना समझाया था उस...