Saturday, 16 December 2017

उने रे , साल मी एक बार ( (कुमाउँनी कविता)



उने रे , साल मी एक बार 
खोल दिए आपुण घरे द्वार, 
बाँझ झन पड़िए दिए , 
जरूर अये साल मी एक बार।  

खौ मी अब सिसूण जाम गो , 
भेतर हेगी चौबाट , 
पाखेक पाथर चोर ही ल गो , 
बल्लियों में पड़ गे दरार।  

त्यर निशाणी उसकये छीन , 
करनि रोज़ त्यर इंतजार , 
फल - फूलो बोठो में बानर भे गी , 
लुके री मीन त्यर लीजी अनार।  

तु , जा ल छ , खूब तरक्की करिये , 
आपुण गौ -गाड़ नाम रोशन करिये ,
बस एक विनती छू , 
आपुण गौ- गाड़ झन भूलिए।  

उने रे ईज़ा , साल मी एक बार 
खोल दिए आपुण घरे द्वार, 
बाँझ झन पड़िए दिए , 
जरूर अये साल मी एक बार। 

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