Friday, 14 November 2025

बूढ़ी अम्मा

 पहाड़ सी ज़िन्दगी हो गयी , 

सब कुछ होते हुए भी कुछ न था , 

सब छोड़कर अकेले उसे , 

पहाड़ ही कर गए थे।  


जिद्दी अम्मा भी थी , 

कितना समझाया था उसे , 

चली जा तू भी वही , 

न जाने क्यों पहाड़ों से इतना लगाव था।  


हिस्से उसके संघर्ष के क्या आया था , 

रोज़ पहाड़ जैसी मुसीबतें , 

उकाव -हुलार चढ़ते -उतरते , 

हाथों से लकीरें भी गायब थी।  


अम्मा रोज़ डूबते सूरज को , 

हुक्का पीते हुए निहारती थी , 

आज रात ही निकल जाये प्राण , 

अगले दिन खेतों में मिलती थी।  


अपने बाड़ -खुड़ों से उसे अथाह प्रेम था , 

किसी में पालक , किसी में प्याज , 

नन्ही -नहीं क्यारियों में कपोल फूटती थी , 

अम्मा मन ही मन संतुष्ट होती थी।  


लौकी और गद्दुऐ सूखा रखे थे घर की छत पर, 

 पीली ककड़ियों  की बड़िया बनाती थी , 

खुद का कल का पता नहीं था , 

पूरे ह्यून बिताने का इंतजाम करती थी।  


एक दिन सच में रात को सोई , 

सुबह उठी ही नहीं , 

बड़िया छत में ओंस में भीग गयी , 

और पालक तुश्यार से मुरझा गयी।  


अम्मा चुपचाप चली गयी , 

और सब कुछ छोड़ गयी , 

बच्चे भी अम्मा की चिंता से फरांग हो गये , 

गाँव वालों ने कहा - बुढ़िया तर गयी।  

Friday, 7 November 2025

कुमाउँनी फसक

 


लेखने लेखने हाथ पट्टे गी , कलमक टूटी टाँकी ,

इंटरनेट पहुँच गो घर घर मी , अब क्ये लेखु बाकी। १।

 

बवाल मचे हले मोबाइलेल , नानतिन सब बिगाड़ हाली। 

रील बढ्नु चस्क लाग गो , किताब बाझ हाली। २।

 

न्यूत पात सब व्हाट्सप्प हेगो , सामान ऑनलाइन एगो। ।

बूढ़ आमा धात लगनु , ब्व्यार इंस्टाग्राम रील देखण मी पट्टे गे। ३।

 

ग्वोर -बाछ को पाऊ अब , खेती बाणी मी बजर पड़ी गो ।

फ्री राशन मी मगन छीन , गोठ  बट्टी भतेर तक फरांग हेगो। ४। 

Friday, 10 October 2025

बजर पड़ गौ


सरकारेक फ्री राशन बट्टी , 

पहाड़ों मी खेती कू बजर पड़ गौ।  


हाथ -हाथ मी मोबाइल , 

काम धंध मी बजर पड़ गौ।  


साग पात ,फल फूल उजड़ गयी , 

बानर हेगी बेहिसाब , बजर पड़ गौ। 


द्वी मिनट मी मैग्गी बण जाने , 

लेसु रवाटो मी बजर पड़ गौ।  


सब जाण फैगी पहाड़ छोड़ बेर , 

गौ -गौनो मी बजर पड़ गौ।  


Monday, 6 October 2025

असोज

 

असोज सिमरु ऐ जा ब्वारी ,

कहाणेक है रै चुटाचुट,

धानक थुपड़ भिझ जानिइये ,

घा काटी बेर खितेड छीन लुट। 

 

नान्तिनो कू चाडों टेम नेहे ,

खाण पीणो काकू ध्यान है रौ ,

हौ -भान कारण छीन ,

खौह मी है रै दै। 

 

काव लाग रौ यौ असोज कू ,

सिमरेन सिमरने आफत ऐ रै ,

झन कै ब्वारी -भट भेज दियो ,

भटाल म्येरि कमर तोड़ रै। 

 

मडु टीपेन -टीपने हाथ पटे गी ,

अखोड़ बौठम बट्टी बानर हीलेगी ,

बजर पड़ जो यौ असोजक मेहण कू ,

काम ज्यादेक , भकार खाली रुण।    

 

Wednesday, 16 July 2025

पधानी चुनाव



भौते मुश्किल हू पधान चुनेण मी , 

नानू -नान गौव म्हे ठाण है जानि पाँच , 

क्वे बिरादर , क्वे रिश्तेदार , 

क्वे ठुल , क्वे कका , क्वे नान , 

वोट काकू दू , खौर परेशान।  


बड़ मुश्किल छू हो दाज्यू , 

काकू वोट दीढ़ छू , 

मुनापीढ़ छू रोज़ , 

लोकसभा , विधानसभा हबे , 

मुश्किल छू चुनण गौव पधान।  


केके चिन्ह अन्नानास , 

केके उगता सूरज , 

केकू मिल जा अनाज की बाली , 

केकु मोराक फाँख, 

गजबजी जा हाथ , खौर परेशान।  


ऊ कू मी यौ करन , 

दुहोर कू मी करन विकास , 

चुनाव जीत बेर , 

लाट साहब बण जानी , 

हर गौव ग्राम पधान।  


सरासर सिमरनि पधान ज्यू , 

लैंटर वाल घर बढ़े लीन्ही , 

पुराण बिछाई खडंच मी , 

नई डुंग बिछे दीनी, 

कामे बखत मी , 

पधान पत न का लुक जानी।   

Monday, 9 January 2023

जोशीमठ


 

दरारें ,

गवाह है ,

हमारे लालच की ,

दरारें ,

सबूत है ,

हमारे कर्मों की ,

दरारें ,

प्रतीक है ,

हमारे स्वार्थ की ,

दरारें ,

परिणाम है ,

प्रकृति से दुःसाहस की।

दरारें ,

सूचक है ,

हमारी बेलगाम प्रवृति की।

जोशीमठ ,

टूट रहा है,

रिस रहा है,

धँस रहा है,

रो रहा है ,

कौन सुने पीड़ा ,

जोशीमठ की,

जाने कल ,

किस पहाड़ की बारी।


- आनन्द मेहरा

ग्राम -कोटुली , पोस्ट - रणमण , अल्मोड़ा ( उत्तराखंड )

Tuesday, 30 August 2022

दाज्यू , कस जमान एगो

दाज्यू , कस जमान एगो ,

फाटि सुराव फैशन हैगो ,

पैलाग -ज्यूजा ख़त्म हैगे ,

"गुड" अब सब हैगो ,

ईज अब "मम्मी " हैगे ,

बौज्यू अब "डैड " हैगो ,

भगवान अब "डबल " हैगो ,

न्युत -पात सब व्हाट्सप्प हैगो ,

ताल बखव बटी वीडियो कॉल हैगो ,

भाव भंगिमा इजहार बंद हैगो ,

शब्द हबे ज्यादा "इमोजी " हैगो,

दै -दूध ,धिनाइ सब पट हैगो ,

पैकेट मी दूध सब घर एगो ,

आठ फेल नेता बड़ गो ,

बी ए पास हयी हैगो ,

नान्तिना पढ़ाई चौपट हैगे ,

हाथ -हाथ मी मोबाइल एगो,

नानतिन सब पब्लिक स्कूल जाणी ,

प्राइमरी पाठशाला बस नामक रैगो ,

गौ -गाड़ सब खाली हैगो ,

पहाड़ सब हल्द्वाणी ,दून बसीगो ,

गोठ -भतेर सब सिसूण जामगो

खेत -खलिहान सब बंजर हेगो ,

राशन -पाणी सब मौल हेगो,

ऐच -पेच सब ख़त्म हैगो ,

सबसे ठुल डबल हैगो ,

बूढ़ -बाढ़िया बात किचाट हैगो ,

फ़िल्मी गीतों चीचाट हैगो ,

दाज्यू , कस जमान एगो ,

मैस बट्टी भौल मैस हरेगो।

 


बूढ़ी अम्मा

 पहाड़ सी ज़िन्दगी हो गयी ,  सब कुछ होते हुए भी कुछ न था ,  सब छोड़कर अकेले उसे ,  पहाड़ ही कर गए थे।   जिद्दी अम्मा भी थी ,  कितना समझाया था उस...